Book Title: Navsadbhava Padartha Nirnay
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 203
________________ तिण ऊंधी श्रंद्धा ले अात्म विगोई ॥ त्रै च्या ही जीव न श्रद्धे मिथ्याती ।। १४ ॥ नव पदार्थ में पांच जीव कहा जिन । च्यार पदार्थ अजीव कह्या भगवान ।। ए नवों ही पदार्थ तुं निरणय करसी । हिज़ समकित छै शुद्ध मान ॥ श्रा श्रद्धा श्री जिनवर भाखी ।। १५॥ जीव अजीव ओलखावन काजै । जोड कीधीपुर सहर मझारो। सम्बत् अट्ठावन बर्ष सतावने । भादवा सुद पूनम बुद्धवारो ॥ नवही पदार्थरो निर्णय किजो॥१६॥ ॥ इति नबपदार्थ चोपाई सम्पूर्णम् ॥ . ...श्री जयाचार्य कृत ढालः ॥ 'प्रीत भितू से लागीरे । सुमति सखरी 'मोय जागीरे॥ लागी प्रीत भिजू थकीरे पडयोरे गणेदर धिसीर । तसु वचना ऽप्रत छोडि नैं म्हारै कुंण पीवै कडवो नीर ॥ प्रीत ॥ १ ॥ अलिङ्गी मानूं नहींरे नहीं मानूं भेषधार ।। टालोकर से काम नहीं। म्हारे परम पूज से प्यार || प्रीत ॥२॥ अन्त करण सहु. दुःख तणोरे। समकित चरण सुश्राथ ।। पूज प्रसादे पामियां पायो रत्न चिन्तामण हात ।। प्रीत ॥३॥

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