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( १९३) दार्थों का जान होता है, दरशन से सर्व पदार्थों का द्रव्य गुन पर्याय यथातथ्य पद्धता है, चारित्र से फर्म को रोकता और तप से कर्मों का क्षय करता है इसलिये यह च्यारों मोक्ष मार्ग है, पंदरह प्रकार से सिद्ध होते हैं उन सब की करणी एकसा है और सिद्ध स्थान में सर्व सिद्धों के एकसा ज्ञानादि गुन तथा आतमीक सुख एकसा है यहां किञ्चित् भी फर्क नहीं है, यह नवमां मोक्ष पदार्थ को ओलखाने के लिए स्वामी श्री भीखनजीने नाथद्वारा शहर में सम्बत् १८५६ मिती चैत सुदि ४ शनिवार को ढाल जोडी जि. सका भावार्थ मैंने किया जिसमें कोई अशुद्धार्थ माया होय उसका मुझे पारंपार मिच्छामि दुकडं है।
॥ कलश ॥
: ॥ चाल त्रूटक छन्द ॥ कह्यो जीव धुर अरु दूसरो अजीव तत्व सुजानही । पुण्य तीसरो फुन पाप चौथो श्राश्रव पं. चमं मानही ॥ छट्टो पदारथ निरजरा अनें सातमूं संबर ग्रह्यो । पाठ छै बंध फुनजे मोक्ष ते नवमूं कह्यो ।॥ १॥ ए नव पदार्थ जे पाखिया जिन भाषिया आगम महीं । तसु ढाल बंध सुजोड नीकी स्वामश्री भितूकही ॥ तेहवें भावार्थ मैं कियो निज बुद्धिके अनुसारही ॥ वच बिरुद्धको श्रायो हुवै तसुं मिथ्या दुकृत धारही ॥२॥ स्वर व्यंजनादिक अनें लघु कुन दीर्घ जे मात्रा