Book Title: Navsadbhava Padartha Nirnay
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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वही । कवि बाच के शुद्ध ग्रहणकर तसु हास्य. . मुझकरस्ये नहीं ।। ए प्रार्थाना है बाचकों से नम्र भावें जानहीं। गुनी प्रातम अर्थी तत्व समझी यथातथ्य सु-मानही . ॥ ३॥ श्रीबीर शाशन मांहि प्रगटे स्वामि श्रीभित्तू सही । जिन आंण वर फुन बांणि शिरधर बिमल शिव मारग कही ।। संसार पारावार तसु उपकार सावद्य दाखियो । जे ज्ञान दरशन चारित तपये धर्म निरवद्य भाषियो ॥ ४ ॥ तसु पाट अष्टम स्वाम कालूराम गणी महाराजही । सुरतरू सांचा मिष्ट वाचा तरन ता. रन जहाझही ॥ तेह उपाशक गुलाब कहै यह अर्थ तासु पसायही । कियो सम्बतें उगनीस बहोतर श्रान्नद हर्ष अथायही ॥५॥ ..... ॥ उक्तंच ।। .......
नवसद्भाव पयत्या पणत्ता तजहा जीव अजीवा पुन्नं पावं पासवो संवरो निझरा बंधो मोरको ...
॥ इति ठाणाङ्ग सूत्रम् ॥ अर्थ नवसद्भाव अर्थात् छता पदार्थ प्ररुण्या ते कहै छै, जीबा १.अजीवा २ पुण्य ३.पाप ४.अाश्रय ५संबर ६.निरजरा ७.ब. घ मोक्ष..

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