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( १८६) स्त्री लिङ्ग सिद्धा स्त्री लिङ्ग मैं ताहिरे ॥ मो ॥ ॥१॥ पुरुष सिद्धाते पुरुष रा लिङ्ग मैंरे। नपुंशक सिद्धा नपुंशक लिङ्ग में सोयरे । येक सिद्धा समय में येकहिज हुारे । अनेक सिद्धा ते येक समय अनेक सिद्ध होयरे ॥ मो ॥ १६ ॥ ज्ञान दरशन चारित्र ने तप थकीरे । सघला हुवा छै सिद्ध निर्वाणरे । यांच्यारां विन सिद्ध कोई नहिं हुवोरे। यह च्यारूही मार्ग मोक्षरा जांणरे ॥ मो॥ ॥ १७ ॥ ज्ञानथी जांण लेवै सर्व भाव रे । दर्शन सुं श्रद्ध लेवै स्वयमेवरे । चारित्र सुकर्म रुकै छै श्रावतारे । तपकरी कर्म तोडे तत्वेवरे ।। मो ॥ १८॥ यह पनरेही भेदै सिद्ध हुश्रा तिरे । संघलारी करणी जाणों येकरे । वलि मुक्ती मैं सघलारा सुख सारषारे । ते सिद्ध छै पनरें भेद अनेकरे ॥ मो ॥ १४ ॥ मोक्ष पदास्थ नै पोलखायवारे । जोडकीधी छै श्रीजीद्वारा मझाररे ॥ सम्बत् अट्ठारे छप्पन्नां वर्ष रे । चैत्र शुध चौथ शनिसर वाररे ॥ मो॥ २०॥ इति ॥
भावार्थ * जीव सर्व कर्म रहित होजाता है उसे मोक्ष कहते हैं, अर्थात् अनादि काल से.तेल और तिल लोलीभूत जैसे जीय कर्म खोली
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