Book Title: Navsadbhava Padartha Nirnay
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(१८७) रेगमती लागै छै अत्यंत खाजरे ॥ एहवारोगी ला सुख छै पुन्य तणारे ।। तिण सू कदे न सीझै प्रातम काजरे ॥ मो॥ ४ ॥ एहवा सुखां सूं जीव राजी हुवैरे । तिण सू लागै छै पाप कर्म पूरे ॥ पछै दुःख भोगवै नरक निगोदमेंरे । मोक्ष सुखां सूं पड़िया दूररे ॥ मो ॥५॥ छुटा जन्म मरण दावानल तेहथीरे ॥ते तो छै मोक्ष सिद्ध भगवंतरे। त्यां श्राईही कर्मी में अलघा कियारे । जब श्राद्धं ही गुण नीपनां छै अत्यंतरे ॥ ॥ मो॥६॥ ते मोत सिद्ध भगवन्त तो इहां ही हुवारे । पछे एक समें ऊंचा गया थेटरे । सिद्ध रहिवानुं क्षेत्र छै तिहां जई रह्योरे । अलोक सूं जाय अड़िया छै नेठरे ॥ मो॥ ७॥ अनन्तो ज्ञान में दरशन तेह-रे । बलि पातमिक सुख अंनन्तो नांगरे । खायक समकित सिद्ध बीतराग ने रे । अटल अवगाहनां छै निरवांणरे ॥ मो॥ ॥८॥ श्रमूर्ति पयों त्यांरो प्रगट हुवोरे । हल: का भारी न लागै मुल लिगारे । तिण सूं अ. गुरू लघु में अमूरती कटोरे । ए पिण गुख त्यां में श्रीकाररे । मो ॥ ६ ॥ अंतराय कर्म सूं तो

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