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. . : . ॥ भावार्थ ॥
मोक्ष पदार्थ नवमां है सो सर्व पदार्थों में श्रीकार है सर्व गुल संगुक है और अनन्त सुख है जिसका पार नहीं है, कम्मों से मू. काणा याने कर्म रहित हुए इस से मोक्ष कहा है परम कहिए उत्कंष्ट पद प्राप्त हुए इसलिये परमपद और कर्म रूप दावानल को मेट के शीतली भूत हुए इस वास्ते निरवाण नाम कहा है, सर्व कार्य सिद्ध किये जिस से सिद्ध और उपद्रव रहित हुए इस लिये उन का नाम शिव है, इत्यादि गुण प्रमाणे अनेक नाम कहे हैं धे सिद्ध अनन्त सुखी हुए जिसका वर्णन करते हैं।
॥ ढाल। पाखंड बधसी श्रारै पाचमेरे ॥ एदेशी॥
मोक्ष पदारथ राछै सुख सास्वतारे। स्यां सुखा रो कदे न श्रावै अंतरे । ते सुख अमोलक निज गुण जीवनारे॥ अनन्त सुख भाष्या श्री भगवं. तरे ॥ मोक्ष पदारथं छै सारा सिरैरे ॥ १॥ तीन कालनां सुख देवतां तणारे । ते सुख पिण इधका घणां श्रथागरे । ते सुख सघलाही सुख इक सिः द्धनारे । तुल्य न आवे अनन्त में भागरे ।। मो।। .॥२॥ संसार, नां सुख तो छै पुद्गल तणांरे । ते सुख निश्चय रोगीला जांगरे । कर्मा वस गम.
ता लागै जीवनेंरे । तिण-सुखारी बुद्धिवंत करो - पिछांगरे । मो ॥ ३॥ पाम रोगीलों हुवै तेहने