Book Title: Navsadbhava Padartha Nirnay
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 187
________________ (१८५) जिसका भावार्थ मैने तुच्छ वुद्धयानुसार किया जिसमें कोई भ. शुद्धार्थ हो उस का मुझे वारंवार मिच्छामि दुक्कड़ है। , - श्रा० जौहरी गुलाबचंद लूणियां जयपुर ___॥ इति अष्टम् पदार्थ ॥ ॥अथ नवमां मोक्ष पदार्थ ॥ ॥दोहा॥ मोक्ष पदार्थ नवमं कह्यो । ते सघलां में श्री. कार ॥ ते सर्व गुणां सहित छै । त्यां सुखारौ छेह न पार ॥ १ ॥ कम्मी सूं मुंकाणा ते मोक्ष छ । त्यांरा छै नाम अनेक ॥ परमपद निरवाण ने मुक्ति छ । सिद्ध शिव श्रादि नाम विशेक ॥ २॥ परम पद उत्कृष्टो पामियों । तिण सं. परमपद त्याग नांम ॥ कर्म दावानलमेट शीतल थया । तिण सं निवाण नाम है ताम ॥३॥ सर्व कार्य सीद्धा छै तेहनां । तिण सूं सिद्ध कह्या- छै ताम उपद्रव करने रहित हुवा । तिण सूं. शिव.. कह्यो त्यांरो नाम ॥ ॥ इण अनुसार जाणि ज्यो । मोक्षरा गुण प्रमाणे नांय । हिव मीत्त तणा सुख वर्ण । ते सुणों राखि चित गंम ॥ ५॥

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