________________
. (२६) जीव सुबिनीत । जीन श्राज्ञा लोपी चाल करीत ते के भाव जीव अनीत ॥५८ ॥ सर वीर संसार रे माही, किणरा डराया डरे नाही, ते पिण छै भाव जीव संसारी, ते तो हुवो अनन्ती बारी॥५६॥ सांचा सुर वीर साक्षात्, ते तो कर्म काटै दिनरात, ते पिण भाव जीव छै चोलो, दिनदिन नैडी करै मोखो ॥६॥ कहि कहिने कीतोयिक कैहूं, द्रव्यने भाव जीव छै वेहूं, त्याने रूडीरीत पिछाणो, छैन्यूरा ज्यूहिया मैं श्राणो ॥६॥ द्रव्य भाव पोलखावन ताम । जोड कीधी श्रीजीद्वारा सू ठाम । सम्बत अठारह सय पचपन वर्ष, चैत वदी पख तिथि तेरस ॥६१ ॥.
इति स्वामी श्री भीखनजी कृत जीव पदार्थ भोलखनाकी
दाल
॥ भावार्थ ॥ दृष्यके अनेक भाष हैं, लक्षण परियाय इन च्यारों को भाष जीव समझना, जीवका लक्षण चैतन्य गुण ज्ञानादि, परियाय,शान करके अनन्त पदार्थ को जाणें इस से अनन्ती पर्याय है वो असास्वती है, कर्मों का क्षायक हो के जो भाव निष्पन्न होता है घो सास्वता है, श्री भगवती सूत्र के सात में शतक के दूजे उहे. से दृव्यतः जीव सास्वता और भावतः असास्वता कहा है इस में किसी तरह की शंका नहीं रखनी चाहिये, जीवतो दृश्य है
और उसकी पर्याय भाव है इसे अच्छी तरह समझना और पहिचानना चाहिए, कमाँ को ग्रहण कर वो आशव भाव जीव है,