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( १७७) तेहनां असंख्याता प्रदेश ॥ संपला प्रदेशां श्राश्रव द्वार छ । संघलां प्रदेशां कर्म प्रवेश ॥ ४ ॥.मि. थ्यात अविरत में प्रमाद छै । वलि कषाय जोग विख्यात । ये पांच तणां वीश भेद छै। पनरें श्राश्रय जोग में समात ॥ ५॥ नालारूप श्राश्रव नाला कर्मनां । ते रूंध्यां हुवै संवर दार ।। कर्मरूप जल श्रावतो रहै । जब बंध न हुवै लिगार ॥६॥ तलावरो पाणी घटै तिणविधै । जीवरै घटै छै कर्म ।। जब कांयक जीव ऊजलो हुवै । ते छै निरजरा धर्म ॥ ७॥ कदे तलाव रीतों हु । सर्व पाणी तणों हुवै सोख ॥ ज्युं सर्व कर्म सोखत हुवै । जिम रीता तलाव सम मोख ॥८॥ बंध छै आठ कर्मी तणों। ते पुद्गलरी पर्याय ॥ तिणवं. धतणी औलखनां कहूं ।ते सुणज्यो चित ल्याय ।।
भानार्थ ॥ : .. . . . .
. आठमां बंध पदार्थ कहते हैं जीवके कर्म बंधे हुए हैं उसका नाम बंध है जिससे जीव के शानादिगुन दवे हुए हैं, जीव चेतन अनन्त ली और प्राक्रमी है परंतु जहांतक जीव कर्म मयीपाश से बंधा है तहां तक जीवका जोर अर्थात् बस नहीं चलता तथा जीवके ज्ञानमयी नेत्र मोह कर्म से आछादित हो रहे हैं जिससे मार्ग को नहीं देखता इस लिए बंध और मोक्ष को जानने के लिए इंष्टान्त कहते हैं जीव भयो तालाव है भरेषुए पानीरूप बंध और