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.. (१८९) नी कर्म की प्रकृति, नाम कर्म की प्रति, गौत्र कर्म की प्रकृति और श्राऊषा कर्म की प्रकृति है, यह पाठ कम्मों की १४० प्रकृती हैं सो जीव के बंधी वोह प्रकृती बंध है, यही प्रकृतियों स्थिति सहित बंधी है इसलिये स्थिति बंध; यही प्रकृतियां उदय होने से शुभाशुभ रश.जीव को देगी इसलिये अनुभाग बंध, और सेही प्रकृतियां अनन्तानन्त प्रदेसी जीवके असंख्याता प्रदेशों में लोलीभूत हो रही है इसलिये प्रदेश बंध कहा है, अब भाई क. म्मों की स्थिति कितनी कितनी है सो कहते हैं।
॥ ढाले तेहिज ॥ '. ज्ञानावरणी दर्शनावरणी बेदनी । वलि आउv कर्म अंतरायोजी ॥ यांरी थित छै संघलांरी सारखी॥ ते सुंण ज्यो चित ल्यायोजी ॥ ॥१३॥ थित यो च्यारूं कर्मा तणीं । अंतर महुरत प्रमा: णोंजी ।। उत्कृष्टी थित. यां च्यारूं तणीं। तीस कोड़ा कोडि सागर लग जाणोजी ॥ ॥१४॥ थित दर्शण मोहनीय कर्मनीं । जघन्य अंतर महूरत प्रमाणोंजी ॥ उत्कृष्टी स्थित छै एहनी । सित्तर कोड़ा कोडि सागर जागोंजी ॥ ॥१॥ जघन्य थित चारित मोहनीय कर्म नी । अंतर महूरत कहि जगदीसोजी । उत्कृष्टी स्थित छ एह
नीं। सागर कोडा कोडि चालीसोजी ॥ ॥ - ॥ १६॥ थित छैः पाऊषाः कमैरी । जघन्याः