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(१७६) पुण्य वंधता है, पुण्य तो निरज़रा की करणी करते शुभ जोगा से बंधता है जिसका वर्णन पुण्य पदार्थ को औलखायावहां विस्तार पूर्वक कहाही है, इस सातमा पदार्थ में निरजरा को औलखाया है सो इस जगहें निरजरा किसका कहना और निरजरा की फरणी किसे कहना इसका वर्णन स विस्तार स्वामी श्री भीखनजी महाराजने हाल जोडके मेवाड देशान्तरगत नांथ द्वारा सहर में विक्रम सम्बत् १८५६ चैत्र वुद द्वितीया गुरुवार को कहा जिसका भावार्थ निजवुद्यानुसार मैने किया जिसमें कोई अशुद्धार्थ हो उसका झुझे मिच्छामि दुकडं, इति सातमा निरजरा पदार्थम् ।
श्रापका हितेच्छु
श्रा० जोहरी गुलाबचंदलुणीयां जैपुर ॥ अथ अाठमां बंधपदार्थ ॥
॥दोहा॥ • प्राउट् पदारथ बंध छै । तिण जीवने राख्यो वंध ॥ जे बंध पदार्य न उलख्यो । ते जीव छै मोह अंध ॥ १ ॥ बंध थकी जीव दबियो रहै । काई न रहै उघाडी कोर ॥ ते बंध तणां प्रबल थकी । कोई न चालै जोर ॥२॥ तलाव रूप तो. जीव. छै । तिण में पडिया-पांणी ज्यु बंध.जांण ।। निकलता पाणी रूप पुन्य पाप छै । बंध ने लीजो एम पिछाण ॥३॥ येक जीव द्रव्य के