Book Title: Navsadbhava Padartha Nirnay
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
(.१७४.) संसारीरी सिद्ध होवंतजी । या ।। ५१॥ कोडां भवांश कर्म संध्या हुवै तो । खिण में देवै खपायजी। एहवो ? तप स्तन अमोलक । तिणरा गुणरो पार न पायजी ।। या ।। ५२ ॥ निरजरा तो निरवद्य उजलो हाथी । कर्म निवत हुवे न्यारजी ॥ तिण सुं निरजरा ने निरवद्य कही छै बीजं निरवद्य नहीं छै लिगारजी॥ या ॥ ५३ ॥ इण निरजरा तणी करणी छै निरवद्य । तिण सूं कारी निरजरा होयजी ॥ निरजरा में निरजरारी करणीं । जुदी जुदी छै दोयजी ॥ या ॥ ५४ ।। निरजरा तो मोक्ष तणों अंस निश्चय । ते देश थी ऊजलो छै जीवजी ।। जिणरै निरजरा करणरी चुप लागी छ । तिण दीधी मुक्तिरी नवजी ॥ था। ॥५५॥ सहजै निरजरा अनादिरी हुवै छै। ते होय होयी ने मिटजायनी ॥ ते कर्म बंध सूं नहीं निवरत्यो ॥ ते संसार में गोता खायजी ॥ या ।। ॥५६॥ निरजरारी करणी अोलखावण । जोड कीधी श्रीजी द्वारा मझारजी ।। सम्बत् अट्ठारे नै वर्षछपर्ने । चैत वद वीज ने गुरुवारी ॥या॥५७॥ ... . ॥ इति निरजरा. पदार्थ ॥ .. .. .

Page Navigation
1 ... 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214