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(३६) में येक समय और प्रागमियां कालं अनन्ता समया होगे किसी वक्त में काल का समय नहीं पूर्तता ऐसा कभी भी नहीं होता, इस अपेक्षाय से काल सास्वता है, और समय उपजके बिनस जाता है इससे असास्वता है जैसे निपजता है वैसे ही नास होता है, भूत भविष्यत और वर्तमान के समया येकत्र नहीं होता इससे काल द्रव्यका बन्ध नहीं, और खन्ध विना देश और प्रदेश नहीं जिससे इस काल द्रव्य के संग आस्ति शब्द नहीं है, तीर्थकर देवाने चंद्रमा सूर्यादिककी चालसे कालका प्रमाण कहा है, निरोगी पुरुषका येक नेत्र फरके उतना वनके असंख्यात संमय
और असंख्यात समयकी येक श्रान्तिका पिछै महरत दिन रात्रि पक्ष मास ऋतु अयन वर्ष पल्योपम सागरोपम और बोस कोडा कोडि सगरोपम का येक काल चक्र, और अनन्त काल चक्रक. येक पुद्गल परिवर्तन आदि का प्रमाण जम्बू द्वीप पन्नती में विस्तार पूर्वक कहा है, तात्पर जयन्य कालकी स्थिति येक समय है इसतरह से येक समय पीछे दूसरा और दूसरे पीछ तीसरा इसही तरह समय उत्पन्न होके विनस जाते हैं यह धर्तना रूपकाल दाई द्वीप और दो समुद्र में है .गे को. नहीं क्योंके अर्ध पुस्कर घर द्वीप से आगे ज्यो जोतिष चक्र है वो स्थिर है
और अन्दरके जोतषी चर हैं उनकी चाल सदा तीन काल में सास्वती येकसा है किञ्चित भी फर्क नहीं होता है इस से कालका प्रमाण कहा है, वर्तमान का येक समय अनन्त जीवों और अजीयों पर वर्तता है जिससे कालको अनन्ती पर्यायहै, तथा इसीसे कालके अनन्ते द्रव्य कहेहैं, क्योंके वर्तमान का समय अनन्ते द्रव्यों पर पी तो अनन्तसमय हुये,मतलब उसही येक समयंको द्रव्यतः अनन्ता कहा है, क्षेत्रत तिरछा ४५ लक्ष योजन प्रमाण, ऊंचा सम भूमिसे ६०० योजन जोतिष चक्र प्रमाण, और नींचा १००० योजन तक जानना, कारण महा विदेह क्षेत्रकी २ बिजय येक हजार यो. जन सम भूमि से नींची है, इसलिये नींचायेक हजार योजन तक काल वर्तता है, यह पतंना रूप काल है, गत काल तो श्रादि रहित अन्त सहित, वर्तमान काल आदि सहित अन्त सहित, भधित