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( १९७ थावें । ते तो मुक्ति में वेगो जावंतजी ॥ या । ॥ २२ ॥ विनय तप कह्यो छै सात प्रकारे। त्यारो छै बहु विस्तारजी। ज्ञान दरशन चारित मन विनय । वचन काया में लोग ववहारजी ॥ या ।। ॥ २३ ॥ पांचूं ज्ञान तणां गुण ग्राम करणां । ज्ञान विनय करणों येहजी ॥ दरशन विनयरा दोय भेद छै । सुश्रुषा ने अणासातनां तेहजी ॥ ॥ या ॥ २४ ॥ सुश्रुषा तो बडां साधुरी करणी त्यांने बंदना करणी शीशनामजी ॥ ते सुश्रुषा दश प्रकार कहि छै । त्यांरा जुदा २ नाम तामजी ॥ ॥ या ॥ २५॥ गुरु श्रायां ऊठ ऊभो होणों। श्राशण छोडि देणों तामजी ॥ श्राशण श्रामंत्रणों ने हर्ष सुं देणों । सत्कार सनमान देणों श्रीम जी ॥ या ॥ २६ ॥ बंदना करी हात जोडि रहै ऊभो । श्रावतो देख सामों जायजी ॥ गुरु ऊभा रहै जिहांलग ऊभो रहणों । जावै जब पोहचावे तायजी ॥ या ॥ २७ ॥ अण पाशातनां विनयः रा भेदने । तालीश कह्या जिनरायजी ॥ अरिहन्त नें अरिहन्त धर्म प्ररूप्यो । वलि प्राचार्य ने उपाध्यायनी ॥ या ॥ २८ ॥ थविर कुल गण संघ