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(१६६) ५-काया क्लेश अर्थात् शरीर की शोभा विभूषा न करें शीत ताप · श्रादि अनेक प्रकारों के कष्टो द्वारा काया को मलंश होने से • सम परिणामों से सहन करें। . ६-प्रति सलेहणा तप च्यार प्रकार से होता है कषाय प्रति सले. हणा १, इन्द्रीय प्रति सलेहणा२, जोग प्रति सलहणा ३,विधत लगाशण सेषणा ४।
१-कषाय प्रति सलेहणाअर्थात् क्रोध, मान २, माया ३, लोभ . ४,ये च्यारों प्रकार की कषायों को न करना तथा उदय श्राई
को निःफल करना। २-जोग प्रति सलेहणा अर्थात्मन,वचन २,काया३,ये तानों. ___ कार के अशुभ जोगों को रंधना और शुभ जोगों को प्रवर्ताना।
३-इन्द्रीय प्रति सलेहणा अर्थात् भोत १ चक्षु २ घाण ३ रश . स्पर्श ·५ इन पांचो इन्द्रियों की शब्दादिक विषयों में राग . द्वेष रहित रहना तथा इनके काम भोगों से विरत होना। '४-विवत सैणाशणा सेषणाअर्थात् स्त्री पशू नपुंशकरहित नि. .. .रदोषमकान में रहना तथा पाटाचोकी श्रादि मिरदोष सेना। यह उपरोक्त. षट प्रकार का बाह्य तप कहा अब पढ़ प्रकार का अभ्यन्तर तप कहते हैं!
॥ ढाल देशी तेहिज॥ 'छै प्रकारे वा; तप कह्यो छै । ते प्रसिद्ध चावो दीसंतजी ।। हिवै छै प्रकारे अभ्यन्तर तप कई छु। ते भाष्यो छै श्री भगवंतजी ।। या ॥२१॥
प्रायश्चित्त कह्यो छै. दश प्रकारें । ते दोष. बालोवे - प्रायश्चित्त लेवंतजी ॥ ते कर्म खपावै पाराधक