________________
१-स्थावर नाम कमे के उदय से जीव स्थाघर होता है जिस से
स्पर्श इन्द्री विना बाकी च्यार इन्द्रियां न पाके चलने फिरने
को असमर्थ होता है। २-सुक्षम नाम कर्म के उदय से जीव सुक्षम शरीरी होके अत्यंत
छोटा शरीर पाता है। ३-साधारण नाम कर्म के उदय से जीव ऐसा शरीर पाता है कि
अत्यन्त छोटा येक शरीर में अनन्ते जीव रहते हैं। ४-अपर्याप्ता नाम कर्म के उदय से जीव पूर्ण पर्याय न पाकर
अपर्याप्त अवस्था में ही मरण पाता है। ५-अथिर नाम कर्म के उदय से जीव अथिर कहलाता है जिस
से निरबल ढीला शरीर पाता है। ६-दुभ नाम कर्म उदय से जीव दुभागी होता है जिससे दूसरे
को अप्रिय लगता है। ७-दुखर नाम कर्मोदय से जीयके खर याने कण्ठ खराव बेखरे
होते है। -अशाहिज नाम कोदय से श्रादेज बचनी न होके करवोली
होता है जिसका यचन कोई अंगीकार नहीं करते हैं। है-अस नाम कर्म के उदय से जीव अजसिया होता है जिस
की सोभा कोई नहीं करता है कोई अच्छा काम भी करे तो: · भी अपजस ही होता है। १०-अपघात नाम कर्मोदय से दूसरे के मुकाबले में हार होती है।
तथा दुभगई नाम कर्म के उदय से चलना फिरना ऐसा खराव कि किसी को अच्छा नहीं लगता है, और नीच गोत्र कर्म पाप के उदय से जीव नीच गोत्र से उत्पन्न होता है ऊंच गोश वाले उसकी छोत समझते हैं, तात्पर यह है कि पाप है सो अशुभ कर्म है कर्म है वो पुद्गल है उन्हें जीव जिन प्राशाबाहर की करणी करके लगाता है तव जीवके अशुभ पणे उदय आने सें. जीव दु:खी होता है, नव पदार्थों में चोथा पदार्थ पाप है जिसकी श्रोलखना के लिए स्वामी श्री भीपन-जीने नांव द्वारा नगर में ढाल