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( ५) मोडी है सम्बत् श्रठारह सय पचावन की साल में जेष्ठ सुद तीज गुरुवार को जिस का भावार्थ मैने मरी तुच्छ चुद्धि प्रमाण कहा है इस में कोई भूल रहा हो उसका मुझे सर्वथा मिच्छामि दुकडं है।
आपका हितेच्छू श्रा० गुलाबचंद लूणीयां ।
॥दोहा॥ श्राश्रव पदार्थ पांचों । तिणने कहिजे श्रा. श्रव द्वार ।। ते छै कर्म भावानां वारणां । ते बारणां में कर्म न्यार ।। १ श्राश्रव द्वार तो जीव छै। जीवरा भला मुंडा परणाम ॥ भला परणाम पुन्यारा बारणां । मुंडा पाप तणां छै ताम ॥२॥ फेई मूढ मिथ्याती जीवडा । श्राव नें कहै अ. जीव ॥ त्यां जीव अजीव न श्रोलख्यो । त्योरें मोदी मिथ्यात्वरी नीव ॥ ३ ॥ श्राश्रव तो नि. वे जीव छै । श्रीबीर गया छै भाख ।। ठाम राम सिद्धांत में भाषीयो । ते सुंणज्यो सूत्रनी साख । ॥ ४ ॥ पाप भावानां बारणां । पहिली कहूं छं नांम ॥ यथा तथ्य प्रगट करूं । ते सुंणो राखि चित गंम ॥ ५॥