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(११३) म जीव तणां छै । तिणसू लागै छै पापं अती वोरे ॥ श्रा॥ ६ ॥ परिग्रहो राख ते पाश्रव कयो छ।परिग्रहों राख ते पिण जीवोरे॥जीव परिणाम छै मुछी परिग्रह । तिणसुं लागै छै प्राप अजी वोरे ॥श्रा ॥ १० ॥ पांच इन्द्रियां ने मोकली मेलै ते श्राश्रव । मोकली मेलै ते जीव जाणारे॥ राग द्वेष श्रावै शब्दादिक ऊपर । यानै जीवरा भाव पिछाणारे ॥ पा ॥११॥ श्रुतइन्द्रीतो शब्द सुण छै । चतुइन्द्री रूप ले देखोरे ॥ प्राण इन्दी गंध ने भोगवै छै । रसइन्द्री रसस्वाद विसेखोरे॥ श्रा ॥ १२ ॥ स्पर्शइन्द्री स्पर्श में भोगवै छै । पांच इन्द्रियां नुं यह सुभावोरे । यांसुं राग में देष करते श्राश्रव । तिण नें जीव कहिजे इण न्या: वोरे ।। श्रा॥ १३ ॥ तीन जोगाने मोकला मेलै. ते आश्रव । मोकला मेलै ते जीवो रे ॥ त्यांने अजीव कहै ते मूढ मिथ्याती। त्यांरा घट में नहीं ज्ञान दीवारे ॥श्रा ॥. १.४. ॥.. ती जोगां रो व्यापार जीव तणोंछै। ते जोग छ जीव परिणा... मोरे ॥. मांठा जोग छै मांठी लेश्या नां लक्षण । जोग भातमां कही है तामोरे ॥ श्राः ॥ १५ ॥