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।। भावार्थ ।। . निरजरा का निर्णय तो ऊपर कहा अब उसकी करणी का पर्णन करते हैं निरजरा अकाम और सकाम दो प्रकार से होती है प्रथम अकाम अर्थात् निरजरा का कामी नहीं परंतु शीत ताप श्रादि अनेक प्रकार से फाया कष्ट करै जिससे कर्म झड के जीव' उज्वल होय तथा उदय होय उसे भोगवे नरकादिक के दुःख उदय होय सो भोगते भोगते जीव हलका होय यहतो सहमें ही निरजरा हुई परंतु निरजरा होने का उपाय नहीं जानता किन्तु दुःखों को सहन किया जिससे कर्म भाड, तथा उदेरि फर कष्ट . लिया और उसे सम भाव से सहन किया तो निरजरा हुई अथया यह लोक के सुखों के निमित्त परलोक देवादिक के सुखों के निमित्त श्रार जस महिमां वधान के निमित्त तप करै सो काम निरजरा है, और जो गिरजरा को जानकर निरजरा का कामी धाक अनेक प्रकार से तप करें उसका नाम सकाम निरजरा हैं। निरजरा की करणी शुद्ध और निरदोष है करणी करणे से अशुम कर्म भडकर जीप ऊजला होता है जिसका वर्णन करते हैं।
॥ढाल ।। दूजो मंगल सिद्ध नमुं नित ॥ एदेशी ॥ .
देश थकी जीव ऊजलो हुवै छै । ते तो निरजरा अपजी ॥ हिव निरजरा तणी शुद्ध करणी. कहुं डूं । ते सुंणज्यो धरि चुपजी ॥ या शुद्ध कर• . गणी कर्म काटणरी ॥ १ ॥ ज्यूं साबू दे कपड़ा ने तपावै । पाणी सं छांटै करै संभालजी । पछै पाणी संधोवै कपड़ा नें । जब मैल छटै तत्कालजी।।