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१ १५७ ) हुयां । जब प्रगटें धायक भाव हो । मु ॥ ते गुण सर्वथा ऊजला । त्यांरो जुदो जुदो छै स्वभा-' व हो ॥ मु | नि ॥ ५८ ॥ ज्ञानावरणी सर्वथा तय हुवां। ऊपजे केवल ज्ञान हो । मु॥दरशना चरणी पिण सर्व क्षय हुवां । उपजे केवल दरशन प्रधान हो ।। मुनि ॥५६॥ मोहनीय कर्म क्षय हुवां सर्वथा। वाकी रहै नहीं अंसमात्रहो |मु॥ जब क्षायक समकित प्रगटें । वली तायक चारिव यथाख्यात हो । मुनि ॥६०.॥ दाशन मोहनीय क्षय हुवां सर्वथा । नीपजे क्षायक समकित प्रधान हो । मु ॥ चारित्र मोहनीय क्षय हुवा नीपजै । क्षायक चारित्र निधान हो । मु॥ ॥ नि ॥ ६१ ॥ अंतराय कर्म अलगो हुवां । नायक बीर्य शक्ति होवे हाय हो । मुदायक लब्धि पांचूं ही प्रगटें । किण बातरी नहीं अंतराय हो । मु | नि ॥६२उपस्म क्षायक चयोपस्म भाव निरमला।ते निजगुण जीवरा निरदोष हो।
मु॥ ते तो देशथकी जीव ऊंजलों। सर्व ऊज. लों ते जीव मौख हो । मु ॥ नि ॥ ६३ ॥ देश व्रत छै श्रावक तणें । सर्व ब्रत साधरै छै ताहि