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दे जीव वीर्य ने फोड़ वै । ते तो है जोग च्यापार हो । सु ॥ ते सावद्य निखद्य तो जोग है । बीर्य सावध नहीं है लिगार हो ॥ मु ॥ नि ॥ ॥ ५२ ॥ लब्धि बीर्य नें तो बीर्य कह्यो । क रंग बीर्य ने कह्यो है जोग हो ॥ मु ॥ ते पण शक्ति वीर्य त्यां लगे । त्यां लग रहे युगल संजोग हो ॥ मु || नि ॥ ५३ ॥ पुद्गल बिन बीर्य शक्ति हुवै नहीं । पुद्गल विन नहीं जोग व्यापार हो । सु ।। पुद्गल लागे छे. त्यां लगे जीवt | जोग बीर्य है संसार मकार हो । ॥ मुः ॥ नि ॥ ५४ ॥ वीर्य शक्ति तो निजगुण जीवरी । अंतराय अलगी हुयां जांग हो ॥ मु ॥ ते बीर्य निश्चय ही भाव जीव है । तिरा में शङ्का मतः श्रांग हो । सु ॥ नि ।। ५५ ।। येक मोह कर्म उपस्म हुवां । नीपजै उपस्म भाव दोय हो ।
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॥ मु ॥ उपसम समकित ने उपसम चारित्र हुवै । ते तो जीव ऊजलो हुवै सोय हो । सु ॥ नि ॥ ॥ ५६ ॥ दरशन मोहनी उपस्म हुवां । निपजै उपस्म समकित निधान हो || सु || चारित्र मोहनी उपस्म हुवां । प्रगटै उपस्म चारित्र प्रधान हो । ॥ मुः ॥ नि ॥ ५७ ॥ व्यार घनघाती कर्म तय