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'श्राव येक ही कहै। त्यांरो मूढ न जाणे न्यावं ॥२॥ वलि श्राशय में रूपी कहै । श्राश्रव ने कहै कर्म द्धार ॥ द्वार ने द्वार में आवै तेह. नें । येक कहै छै , मुढ गिमार ॥ ३॥ तीन जोगां नैं रूपी कहै । त्यांने हिज कहै अाभव द्वार । बलि तीन जोगां ने कहैं कर्म छै । श्रो पिया नहीं विचार ॥ ४ ॥ शाश्रव तणां बीस भेद छ। ते जीव तगीं पर्याय॥ ते कर्म तणा कारण कहा । ते मुणिजो चितः ल्याय ॥ ५॥
॥ ढाल।। चतुर बिचारकरि नैं देखो । एदेशी ॥ मित्थ्यात आश्रय तो ऊधो श्रद्धै छै । ऊधो श्रद्ध ते जीव साक्षातोरे ॥ तिण मिथ्यात आश्रव ने अजीव श्रद्धे छै । त्यांरा घट मांहि घोर मिथ्या, तोरे ॥ भाभव पदार्थ निरणो कीजो ॥१॥ जे जे सावध काम त्याग्या नहीं है। त्यांरी आसा बछा रही लागीरे ॥ तिण जीव तणां परिणाम छै मैला । अत्याग भाव छै अबत सागीरे ॥ श्रा॥ २॥ प्रमाद पाश्रव जीव परिणाम छै