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(१४६ का.नांम निरजरा है सच त उज्यल होय उसका नाम मोक्ष है, अंध ज्ञानावरणीयादि च्यार घातीक क्रर्मों का आयोपस्म होने से जोव के गुन प्रगट होते हैं जिसका वर्णन विस्तार पूर्वक कहते हैं।
१-शानावरणीय कर्म क्षयोपस्म होने से केवल विना च्यार शान तीन अज्ञान तथा भणना गुणनां येह पाठवोल प्राप्त होते हैं, शानावरणीय कर्म की पांच प्रकृती में से मति और श्रुत शाना: वरणी तो किंचित् सास्वती जीवके क्षयोपस्म रहती है जिस से समदृष्टी के तो मति श्रुति ज्ञान और मिथ्यात्वी के मति श्रुति अशान जघन्य में है तथा वाको प्रकृतियों का क्षयोपस्म जितन्ग जितना अधिक होय उतना उतना ही ज्ञान गुण अधिक प्रगट होता जाता है, मित्थ्याती के तो जघन्य दोय और उत्कृष्टा तीन अज्ञान होता है, और समदृष्टी के ज्ञानावरणीय कर्म क्षयोपस्म होने से जघन्य दोय ज्ञान और उत्कृष्टा च्यारं ज्ञान होता है, तथा मिथ्याती तो जघन्य आठ प्रवचन माता का भणता है ओर उत्कृष्टा देश ऊणा दश पूर्व भण जाता है, समदृष्टी जधन्य आठ प्रवचन माता का भार उत्कृष्टा चौदह पूर्व भण जाता है, अवधि कानावरणीय क्षयोपस्म होने से समदृष्टी के तो अवधि ज्ञान और मिथ्या दृष्टी के विभङ्ग अज्ञान होता है.. मन पर्यव ज्ञानावरणी का क्षयोपस्म मित्थ्यात्वी के कदापि नहीं होता है इस प्रकृती का क्षयोपस्म तो समष्टी साधू के ही होता है जिससे मन पर्यव ज्ञान प्रगट होता है, केवल शानावरणो का क्षयोपस्म होता नहीं इसका तो नायक ही होता है, तात्पर्य ज्ञान अज्ञान दानूं ही क्षयोपस्म भाव है सो जीव के निजगुन हैं दोनूं ही का गुन यथार्थ जानने का है विपरीत ; जाने सो मिथ्यात है, तब कोई कहै तो फिर इस गुनको अ: शान क्या कहा इसका उत्तर यह है कि जैसे कूवेका पानी तो शुद्ध निरमल ठण्डा और मीठा है परंतु वोही पानी ब्रह्मन के वरतन में रहने से शुद्ध गिना जाता है और वोही पानी मात के वरतन में रहे तन अशुद्ध गिनते हैं वैसे ही मित्थ्याती के, धान गुन प्रगट हुवा सो मिथ्यान सहित है इसलिये उसे-म.