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(११५) आने वाले येक कैसे होसला है, द्वार है सो श्राश्रव है जीव है अरूपी हैं, और श्राने वाले है सो कर्म है अजीव हैं रूपी है तो येक कैसे हुवा-परंतु मूढ लोग कहते हैं तीन जोग रूपी है जोग, है सो आश्रय है तथा ती जोगों को कर्म कहते हैं कर्म है सो अजीव है इसलिये आश्रव अवि है ऐसा प्ररूपते हैं उन लोगों को पाश्रव को यथार्थ समझाने के लिये प्राव के वीस बोलो. को विस्तार पूर्वक यथा तथ्य कहते हैं१-ऊधीश्रद्धा अर्थात् मित्थ्याश्रद्धनां सोही मित्थ्यात पाश्रव जर्जाव
है श्रद्धा और श्रद्धने वाला येक है। . २-जो जो सावध कार्य त्यागे नहीं हैं जिन्हों की श्राशा वान्छा निरंतर लगी हुई है आतम प्रदेश अत्याग भाव पणे परिणमें है उसही का नाम अग्रत आश्रय है जिस से निरंतर पाप
लगता है। ३-प्रमाद अर्थात् निरवध करणी से श्रण उत्साह पण जीय परि
णम्यां है सो प्रमाद आश्रय है, जहांतक अप्रमाद गुणस्थान नहीं पावेगातहातक प्रमाद आश्रय द्वारा निरंतर पापलगता है। ४-क्रोध मान माया लोभ ये च्या कपाय पणे जीव परिणा
सो कपाय आश्रव है जहां तक कपायीन होगा तहां तक कषायं प्राथव द्वारा निरंतर पाप लगता है इसलिये कषायी जीव का नाम कषाय पातमा है. लोही कषाय आश्रव जीव के परिणाम है। , ५-मन वचन काया के जोगों का व्यापार जीव का है जोगों पर्ण
परिणम्या सौ जोग परिणामी जीव है जोग भातमां कही है जोगों द्वारा कर्म ग्रहण करै उसही को जोग भाव कहते हैं। ६-प्राणातिपात आश्रव अर्थात् जीव हिन्सा करे, तो जीव हिन्सा कर सो जीव है, हिन्सा जीव के परिणाम है सोही प्राणातिपात पाश्रव है।