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चंचलताको रोक कर पातम प्रदेश स्थिर होते हैं उसहीका नाम संबर है तात्पर जीवके अथिर प्रदेश प्राश्रय है और स्थिर प्रदेश संबर है।
॥ बाल तेहिज॥ जोगपरिणामिकनें उदयभाव । त्यांने जीव कहया इण न्याय । अजीव तो उदय भावनांहि । ते देखल्यो सूत्र मांहि ॥५७॥ पुन्य निस्वद्य जोग सुं लागैकै प्राय । ते करणी निरजरारी छ त्हाय । पुन्य तो सहिजै लागैछै ताहि । तिणसु जोग के श्राश्रव मांहि ॥५६॥ जेजे संसारनां छै काम । त्यांरा किण २ रा कहु नाम । ते सघलाछै श्राश्रव तांम । ते सघला छै जीव परिणाम ॥५६॥ कर्मा मैं लगावै ते श्राश्रवा लगावै तेहिज छै जीव द्रव्य । लागैते पुदगल अजीव । लगावै तेतो निश्चयछ जीव ॥६॥ कर्मारोकरता छै जीव द्रव्य । करता पणों तेहिज श्राश्रव। कीधा हुवा ते कर्म कहाय । तेतो पुदगल लागैछै आय ॥ ६१ ॥ त्यारे गूढ मिथ्यात अंधारो ते पिछाणे नहीं श्राश्रय द्वारो। त्यांने संवलो तो मूल न सूझै । तेतो दिन २ अधिक अलु झै ।।६।। जीवर प्राडा छै कर्म आठ । तेतो लगरहया पाटान पाट । त्यांमें घातिया कर्मछ च्यार । मोक्षमार्गराः