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जोड कीधी श्रीजी द्वारा सहर मंकार । सम्बत् अठारह पचावन वर्षे, जेठ सुदी त्रतिया गुरुवार ||पा ॥ ५८ ॥
॥ इति पाप पदार्थ ॥ ॥ भावार्थ ॥
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sure कर्म निकेवल पाप और घमघातिक है उनका पर्सन तो ऊपर कियाही है अब प्यार कर्म पुन्य पाप दोनों हैं सो जिस में से पाप का वर्णन करते हैं, जीव पाप के उदय से श्रसाता बेदता है जिस पाप का नाम असाता वेदनी कर्म है वोह पुद्गल हैं - साता बेदनी कर्म पणे परिणमें हैं इसही लिये उन पुद्गलों का नाम असातावेदनी पाप कर्म है, तथा ज्यों श्रायुष्य पण परिणमें उन पुद्ग
का नाम श्रायुष्य कर्म है आयुष्य व्यार प्रकार का है नारकी का आयुष्य पाप प्रकृति है तथा पृथिव्यादि पंचस्थावर और बेन्द्री सेन्द्री चौरिन्द्र का श्रायुषा पाप प्रकृती है कितनेक तिर्यच पंचद्री का भी आयुष्य पाप की ही प्रकृति है और सन्नी मनुष्य तथा कितनेक सन्नी मनुष्य का श्रायु कर्म भी पाप प्रकृति जान पडता है जिसका आयुष पाप प्रकृति है उनकी गति वा अनुपूर्वी भी पाप की ही प्रकृति है क्योंके ज्यो आयुष्य पाप प्रकृति है तो गति अनुपूर्वी भी उसके साथही है फिर निश्चय तो श्री जिनेश्वर देव कहें वो सत्य है, तथा व्यार संघयण में ज्यो ज्यो खराब छड़िये वा व्यार संस्थान में ज्यो ज्यो खराब श्राकार है वो अशुभ नाम कर्मके उदयसे हैं, और ज्यो शरीर तथा अंगोपांग वंधण संघातन में कितने कोंके खराब खराब श्रमनोग्य पुद्गल है सो भी अशुभ नाम कर्म के उदयसे हैं, और ज्यो २ कुबर्ण कुगन्धरस कुश्पर्श आदि अमनोग्य मिले हैं सोभी अशुभ नाम कर्म का ही उदय है, तथा स्थावर का दसक अर्थात् स्थावर के दस बोल हैं बो भी अशुभ नाम: कर्म का उदय है सो कहते हैं