________________
(स) लागे लिगार ॥२०॥ फूटी नावारो दृष्टांत । श्राश्रय नोलखायोभगवंत । भगोती तीजा शतक मंझा। तीजै उद्देशके विस्तार ॥ २१ ॥ वलि फटी नावागे दृष्टांत । पाशवनें श्रौलखायो भगवंत । भगवती पहिला शतक मंझार । छट्टै उद्देसे विस्तार ।।२२।। कहया छै पांच श्राश्रवदार । वलि अनेक सूत्रां मंझार । तेतो पूराकेम कहाय । सपलारोछै येकज न्याय ।। २३ ॥
॥ भावार्थ ।।
... श्रीगणो भंगसत्रके पांच ठाणे में पांच माधषद्वार को है मित्ल्यात १ अनत २ प्रमाद ३ कषाय ४ जोग ५ पेक्ष पांच प्रकार के आश्रयद्वार हैं अर्थात् जीवके इन पांचों द्वारा कर्म लगते हैं मिरथ्याश्रद्धा से अग्रतसे प्रमाद से कपाय से और मनचनका. पाके जोग धर्माने से, जीव मिथ्यात्व में प्रवा सो मित्य्यात्व
आश्रय जीवके परिणामहै १ अंत अर्थात् जिस जिस द्रष्यों के स्याग नहीं किये उन द्रव्यों की प्रासाबन्छा निरंतर है.सो अमत • आश्रय जीयके परिणामहै २ प्रमाप अर्थात निरवध कार्य से प्रण उत्साह सो जीवो मैले परिणामह ३ कषाय अर्थात् क्रोध मान माया लोभ में प्रवत रहाहै सो कषाय प्राश्रव जीवके.परिणाम है
५जोग अर्थात् मन बघनकायाके जोगो का व्यापार सो जोग : आश्रय जीवके परिणामहै ५ उपरोक पांधू श्रव जीयके उघोड़े
द्वारहै इन द्वारा होके कर्म आतेदार हैं सो जीव के परिणामहै जीव के परिणाम है सो जीव है, श्रीठाणां अंग सत्र की टीका में भीमयदेव सरिने कहा है अमरीका-"आधषणं सीपतराने