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॥ भावार्थ ॥ जीव जिस पुद्गलों से शुद्ध हुआहै उन पुद्गो का नाम भी शुद्ध हैं जबकोई कहै पुद्गलों से तो जीव मलीन हुआ और होरहा है तो पुद्गलों से जीव शुद्ध कैसे होसका है जिसका उत्तर यह है कि संसारिक जीवस शरीरी व्यवहारनय की अपेक्षाय शुद्ध होताहै जैसे कोई बस्तु भ्रष्टादि से अशुद्ध होती है तो वो स्वच्छ जल प्रा. दि पदार्थ लें शुद्ध होजाती है वैसे ही पुन्य मर्या शुद्ध पुद्गलास जीव उच्चपद् पाके संसार में ऊंचे दरज के मनुष्य या देवता गिने जाते है तो उनके प्रसंगर्स पुद्गल भी ऊंचे कहलाते हैं, सो कहते हैं, तिर्थकरको पदवी चक्रिवर्तकी पदयो, वासु देधको पदवी, बलदेवकी, मंडलोक राजाको पदवी, तथा देवेन्द्रकी पदवी, अह मिन्द्रकी पदवी आदि बडी बडी पदवियां पुन्यके उदयसे जीव पाता है तवजीवभी संसार में ऊंचा कहलाया और वो पुन्य मयी पुद्गल ज्यो के जिनो उदयसे ऐसा हुआ लो पुद्गल भी ऊंचा कहलाया, ज्यों २ पुद्गल विके शरीर पणे या इन्द्रियोंक श्राकार पणे, वा रूप कान्ति अतिसयपणे परिणमे है वो सब पुन्य के. उदयसे है, तथा प्यारे बिछडे हुए मिलते हैं वा सजनों का संयोग मिलता है, निरोग शरीर पाता है, हस्तां घोडा रथ प्यादाः कटक, च्यार प्रकार सेना, ऋद्धि वृद्धी सुख सम्पदा आदि सब पुन्य के उदय से मिलते हैं, अथवा क्षेत्र कहिए जमीन तथा जायदाद चांदी सोना धन धान्य कुम्भी धातु दोपद कहिए दासदासी. तथा चोपद ज्यानवर अादि पुन्यक प्रतापसे मिलता है, तथाहीरा पन्ना माणक मोतो आदि अनेक तरह के रत्न और अति प्रिय मनोज्ञ रूपवती लो पुत्र पोत्र आदि पुन्योदय से मिलते हैं, तथा देव लोकों में देव समन्धिया दिव्य प्रधान सुख हुकुमातादि भी प्रवल पुन्योदय से पाते हैं, तात्पर्य ज्यो २ संसार के सुख हैं लो सव पुन्यके उदयसे हैं पुन्य विना संसारिक सुख कुछ भी नहीं मिलता है परंतु संसारिक सुख पुद्गलोक है सो सव असार
और अनित्य हैं मोक्षके प्रात्मक अनोपम सुखों के आगे ये सुखा. कुछ भी नहीं है जैसे पांच रोगीको खुजाल अच्छी लगें, सर्पके