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(६) मैं बादलों से चंद्रमा ढक जाता है तव उद्योत योहत कम होजाता. है वैसे ही कर्मों मयो यादलों से जीवके ज्ञानादिक गुन ढक जाते हैं सो कहते हैं। ज्ञानवरणीय अर्थात् शानके प्राडी पायरणी जिस से जीवका ज्ञान गुन वाहुधा है, ऐसही दरिशना परणीय, दरिशन गुनके श्राडी है, मोहनीय कर्म से जीष मतवाला होके मि. स्थ्यात्व में प्रवर्तता है और शुद्ध श्रद्धारूप गुनकालोप होता है तथा जीवके प्रदेशों को चंचल करिके कर्म प्रहण करता है जिससे चा. रित्र गुन उत्पन्न नहीं होता, और अंतराय कर्म से जीवका चिर्य गुन दयाहाहै जिससे अच्छी २ वस्तु नहीं मिलती है ये च्यारों कर्म पुद्गल, रूपी और घ्यार स्पर्शीहें इन्हें जीव खोटी करणी करिके लगायाहै जिन्होंके उदय से जीव भी खोटा २ नाम पाता है जैसा २ गुन जीव के इनसे रुके हैं धैसा ही इनके नाम ज्ञाना अरणीय फर्म की पांच प्रकृति, अर्थात् पांच प्रकार से जीव का ज्ञान गुन दयाहै, मतिज्ञानावरणीय से मतिज्ञान श्रुतिज्ञानापरणीय से श्रुतिज्ञान अवधिशानावरणीय सें अवधिज्ञान मनपर्यघ ज्ञाना. वरणीय लें मन पर्यवज्ञान और केवल ज्ञानावराय से केवल ज्ञान अर्थात् सम्पूर्णज्ञान वाहुआहै, ये ज्ञानावरणीय फर्म कुछ क्षय . और कुछ उपस्म होय तल जैसी २ कर्म प्रकृतिका क्षयोपस्म होने से पैसाही ज्ञानोत्पन होताहै, यथा मति श्रुतिज्ञानावरणीय का जितनाही.क्षयोपस्म हो उतनाही निरमल मति श्रुतिज्ञान उत्पन्न होताहै ऐसेही अवधि तथा मनपर्यषको जानना अर्थात् ज्ञानावरः गीय कर्मकी ज्यार प्रकृतिका क्षयोपस्म होनेसे जीव च्यार क्षयोः परम ज्ञान पाता है, और केवल ज्ञानावरणीय का क्षयोपस्म नहीं होता, नायकही होताहै जिसके क्षय होनेसे केवल ज्ञानोत्पल होताहै । ऐसही दरिशनावरणीय कर्मकी नव प्रकृतिहैं सो नेत्रों देखमा तथा सुनना श्रादिको रोकतीहैं चतुदरिशनावरणीय के उदय से अंधा होता है, अचलू दारशनाबरणीय के उदय संघा विना व्यार इन्द्रियों का गुन सुननी श्रादि की हानि होती है, अवधि दरिशनावरणीय के उदय से अवधि दरिशन नहीं पाता है, और केवल दरिशनावरणीय.से केवल .दरिशन नहीं उत्पन्न होता है, तथा पांच प्रकार की निद्राभी दारिशनावरणीय कर्म के