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बांधेगा वैसा हः उदय श्रावेगा, जीवके दान लाम भोग उपभोग वीर्य इन पांचूं गुनों को तय कर्म दबाया है वैसा ही नाम इस अंतराय कर्म का है परंतु स्वभाव दोनूं का अलग २ है जीवके गुन जीव है और अंतराय कर्म अजीव है जिसका गुन जीव के अन्तराय देनेका है । तात्पर ज्ञानायरणी दरिशना वरणी मोहनीय अंतराय यह च्यार कर्म एकान्ति पाप कर्म है अजीव है, जिन्हों के उदय से जीव के ज्ञान, दारिशन, सम्यक्त्व चारित्र, वीर्य, यह च्या गुनों की घात हो रही है याने दवे हुए हैं इससे इनका नाम घातिक कर्म है । चाकी च्यार कर्म अघातिक अर्थात् उपरोक्त अनन्त चतुष्टय की घात इन च्यारों से नहीं होती ये च्यारों कर्म पुन्य पाप दोनों हैं जिस में पुन्य का वर्णन तो पुन्य पदार्थ में कह ही दिया है अव पाप का वर्णन कहते हैं।
॥ ढालतेहिज॥ व्यारघन घातिया कर्म कह्या जिन, हि अघातिया कर्म छै वलि च्यार ! त्याने पुन्य पाप दो। कह्या जिन, हिव पाप तणुं कहुं छू विस्तार । पा ॥ ४३ ।। जीव असाता पावै पाप कर्म उदय से, तिण पापरो साता बेदनी नाम 1 जीवरा संच्या जीवनें दुःख देवे, असाता बेदनी पुद्गल परिणाम ॥ पा ॥ ४४ ॥ नारकीरो आउषो प्रापरी प्रकृति, केई तिर्यंचरो श्राउपो पिण पाप । असन्नी मनुष नें केई सन्नी मनुपरो, पापरी प्रकृति दीसै छै विलाप ॥ पा ॥४५॥ ज्यारो पाउषो पाप कटो