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(५७) सर्व गमता लागत हो लाल ॥ पुन्य ॥ ४ ॥ सर्प डंक लाग्यां जहर परिगम्यां, मींग लागै नीम पान हो लाल । ज्यूं पुन्य उदय हुवां जीवनें मींग लागै भोग प्रधान हो लाल ॥ पुन्य ॥ ४६ ॥ शेगीला सुख छै पुन्य तणां तिण मैं कलाम जाणों लिगार हो लाल । ते पिण काचा सुख असास्वता, त्याने विणसतां न लागै बार हो लालं ॥ पुन्य ॥ ५० ॥ आत्मिक सुख छै सास्वता; त्यां सुखांरो नहीं कोई पार हो लाल । ते सुख रहै सदाकाल सास्वता, त्रिहुं काले येक धार हो लाल ॥ ५१ ॥ पुन्यतणी बान्छा कियां, लागें छै एकान्ति पाप हो लाल । तिणसूं दुःख पामैं इण संसार में, बधतो जाय सोग संताप हो लाल ॥ पुन्य ॥ ५२ ॥ जिण पुन्य तणी बान्छा करी तिण बान्छा कामने भोग हो लाल । त्याने दुःख होसी नरक निगौदरा बले बाल्हारो पडसी बियोग हो लाल ॥ पुन्यं ॥ ५३ ॥ पुन्यतणां सुख छै असास्वता० ते पिण करणी बिना नहीं थाय हो लाल । निर्वध करणी करै तेहनें, पुन्यतो सहजै लागै बै प्राय हो लाल ।। पुन्य ।। ५४ ॥ पुन्यरी.