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(६६) छोके पुम्योपार्जन करताहै, परंतु सावध करणी ज्यो जिनामा थाहरहै उससे पुन्य कदापि नहीं होताहै, ज्ञानावरणी दरिशनापरणी मोहनीय अंतराय ये व्यार कर्म तो पापही है, और नाम गौत्र घेदनी प्रायुज्य ये प्यार कर्म पुन्य पापदोहें सो कैसें बंधते हैं उनका वर्णन शास्त्रों में कहा सो कहते हैं। पुन्यमयी दीर्घ आयुष कर्म तीन प्रकार से वंधताह श्रीठाणा अंग'सूत्र के तीसरे ठाणे कहा हैं हिन्लान करणे से १झूठ न बोलने से २ तथा रूपं श्रमण निग्रंथको प्रासुक निर्दपण च्यार प्रकारका आहार देनेसे दिर्धायु कर्म बंधताहै, और हिन्सादि तीनो कर्तव्य स अल्प आयु कर्म बंधता है सो पापमयीहै, तथा शुभ दीर्घायु भी हिन्सा में करण से १ झूठ न बोलने से २ तथा रूपं साधू मुनिराजको बंद मा नमस्कार करने से प्रोतकारी व्याकं आहार पहरानेसे ३, और अशुभ दीर्घायु कर्म हिन्सादि तीनो कर्तव्यों के करणे से बंधताहै, ऐसा ही पाद श्रीभगवती के पांच में उसमें भी पाहा हैं। गौत्र कर्म के दो भेद है येक तो ऊंच गौम सो पुन्यहैं और दूसरा नीच गौत्र घो पापहै, साधू मुनीराजों को बंदना फरणे सें. नीच गोत्र को खपाते हैं और ऊंच गोत्र बांधते हैं श्री उत्सगत्ययम २६ में अध्ययन में कहा है, तथा धर्म कथा कहने से कल्याणका. रीकर्म बंधते है सो गुण तीसमा अध्ययन में कहा है, ऊंच गोत्र यंधने का कारण यंदना करना है, कल्याणकारी कर्म का कारण धर्म कथा कहना है इन दोन हो कर्तव्यों को जिन प्राज्ञा है और निरजरा धर्म है। बीस बोलकारके जीव पूर्ष संचित कर्मों की कोडि खपाक तीर्थकर नाम कर्म बांधता है ऐसा श्री ज्ञाता सूत्र के आठ में अध्ययन में कहा है। श्री सुख विपाक सूत्र में अधिकार है कि दस जनों में साधू मुनिराजो को शुद्ध निर्दोष आहार देने स प्रति संसार कारिक मनुष्य का श्रायुष.बांधा.है सो पुन्य है। तथा श्री भगवती भूत्र के सातमा शतक के छहे. उद्देसे गौतमखामी ने श्री भगवान से पूछा है हे प्रभू साता घेदनी कर्म कैसे। बंधता है तब भगवत ने फरमाया है प्राण भूत जीव सत्व को दुःख न देनेसें, सोंगन उपजाने से, न.भूराने.सं, न रुलाने से, ना। पोदण स, तथा प्रतापना न देनेसें, साता घेदनी कर्म बंधता है और