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पात्र कुपात्र नहीं नाम हो ॥ भ ॥ पुं ॥ ३६ ॥ तिणसूं संचित श्रचित दोनूं कह्यारे लाल । पात्र कुपात्र कह्या ताम हो || भ ॥ पुन्य निपजै दीघां शकल नेंरे लाल । ते झूठ बोले सूत्र ले २ नांम ॥ हो ॥ भ ॥ पुन्य ॥ ४० ॥ कहै साधु श्रावक पात्र ने दियां रे लाल । तीर्थंकर नामादि पुन्य थाय हो || भ || अनेग ने दान दियां थकां रेलाल अनेरी पुन्य प्रकृती बंधे श्राय हो ||४|| पु ॥ ४९ ॥ इम कहै नाम लेवे ठाणा अंगनूं रेलाल । नवमां ठाणामें अर्थ दिखाय हो । भ ॥ त अर्थ अण हुंतो घालियोरे लाल । तिगरी भोलां नैं खबर न कांय हो ॥ भ ॥ पु ॥ ४२ ॥ ज्यो अनेशने दियां पुन्य निपजैरे लाल । जबटलियों नहीं जीव येक हो । भं । कुपात्र ने दियां पुन्य किहांथकी रेलाल ये समझो आणि विवेक हो । भ ।। पु ॥ ४३ ॥ पुन्यरां नव वोल समुचै कह्या रेलाल । उठा तो नहीं छै निकाल हो ॥ भ ॥ बंदना व्यावच पि समुचै कह्यारे लाल । ते बुद्धिवंत लीज्यो संभाल हो ॥ भ ॥ पु ॥ ४४ ॥ वंदना करतां खपावै नींव गौत नैरे लाल । बले, ऊंच गौत बंधाय हो ॥ भ ॥ तीर्थकर गौत बांधे व्यावच कियां रे लाल । ते पिणसमुचै बोल कह्या छै त्हाय हो ॥म॥ ४५ ॥ तीर्थकर गौत बंधे बीस बोल से
पु ॥
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