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ध्यार कर्म तो एकान्ति पाप कर्म हैं इन की फरणी तो साप है तथा भाशा बाहर है। और बेदनी नाम गौत्र आयुष्य ये ध्यार कर्म पुन्य पाप दोन है जिसमें पुन्य की करणी तो निर्वद्य और आहा मांदि है, पाप की करणी आशा याहर है, यह पुन्य पाप की करणी का अधिकार श्री भगवति सत्र के पाठमां शतक केनयमांडर. देसा में विस्तार पूर्वक कहा है जिस का न्याय समडी जानरहे हैं। करणी करिके पुन्य के सुखों का निधान न करें। भले परिणाम समजोगपरते, परिशह उपनग समपरिणाम से क्षमें, पांचों शन्द्रयों को पस करै, माया कपट रहित हो, शान की उपासना फर, भमण पणा सहित हो, जिस को आठ प्रयचन माताके हितकारी हो, स विस्तार धर्म कथा कहै, इन दस पोलो से कल्याणकारी कर्म धंधता है यह करणी निरवध है, और यही बोल उ. लटा करणे से अकल्याण कारी कर्म बंधता है सो करणी साप है, ये दसों योल ठाणांग में कहे हैं। .
॥ ढाल तेहिज॥ अन्न पुण्य पांण पुग्य कह्यो रेलाल । लयण सयण बस्त्र जांण हो ।म।। मन बचन काया पुन्य छै रेलाल । नमस्कार नवमुं पिछाण हो । म ॥३७॥ पुन्य बंधै यह नव प्रकार से रेलाल । ते नवू ही निरवद्य जाण हो । भ । नव बोलां में जिन जीरे श्रागन्यारे लालातिणरी बुद्धिवंत करिज्यो पिछाण हो । म ॥ पु ॥ ३८॥ कोई कहे नव बोल सम: चय कह्यारे लाल.। सावध निरवद्य न कह्या. ताम हो ॥भः ॥ सचित श्रचित पिण नहीं कह्यारे लाल