________________
पुदगल हैं रूपी है जीवोंके साथ होने से उन पुग़लों का नाम पुन्य है वोह जीव के शुभपणे उदय होता है तब.नीष को साता होती है, तात्पर पुन्य है सो शुभ कर्म है पाठ कर्मों में से च्यार कर्म तो एकान्त पाप है और बंदनी आयुष नाम गौत्र यह व्यारों कर्म पुन्य पाप दोन हैं, अनन्त प्रदेशी पुद्गलों का सम्म पुग्य कर्म मयी होके जीवके उदय होय तष अनन्त सुख करै इसलिए पुस्य की अनन्त पर्यायहै, निर्वध योग बर्तनेसे अनन्त पुगलोंका ज्यार स्पर्शाया पुन जीष के लगते हैं उनहीं पुद्गलों का नाम पुग्य पृषक २ गुण प्रमाण हैं तो कहते हैं, साता वेदनी पणे परिणमनं करिके सातापणे उदय होताहै इसलिए उनका नाम साता बेदनी पुन्य कर्म है, और जो शुभ मायुष कर्म पणे परिणम करके शुभ मायुष पणे उदय होता है उन कर्मों का नाम शुभ मायुष्यहैं, जिस आयुपमें धणांकाल तक रहणा वान्छै ऐसा विचारें कि मैं यडा सुखीह मेरी उमर सुखोंमें जारहीहै किसी तरहेकी व्याधि नहीं है उस ही आयुषका नाम शुभ आयुष है, कितनेहीं देवता और मनुष्योंकाशुभप्रायुप है तथा केई तिर्यंच युगलियों का आयुष भी पुन्य के उदय से ही जान पड़ता है, और जो पुद्गलोका. पुंज जीव के संग परिणमन कर उदय होनेसे अनेक तरह की बस्तु प्राप्ति करताह उनका नाम शुभ नाम कर्म हैं, ज्यो शुभ मायुष्यधन्त मनुष्य देवता हैं उनकी गति और अनुपूर्वी मी पुन्योदयसे ही हैं, पांच शरीरों के ज्यो शुद्ध निर्मल है वा तीन शरीरोंके जो "उपाङ्ग निर्मल है वो शुभनाम कर्म के उदय से हैं, पहिला संघय. ण में ज्यो बजरसमान मजबूत हड़ियां और पहिले संठाण में ज्यो अच्छा खूबसूरत आकार है वाह.शुभनाम फर्म पुन्योदयसे हैं, तथा अच्छे २ वर्ण गन्धि रस स्पर्श जीव को मिलते है सो शुभ .नाम कर्म पुन्य के उदय से मिलते हैं, उन्हें जीव भनेक प्रकार से भोगता है, तथा पुन्य प्रकृति ४२ प्रकार से भोग भाती है तो कहते हैं। १ साता येदनी . अर्थात् सुखसाताषेदना- वेदनी कर्मका उदय है २ऊंचगोत्र, कर्मस ऊंचे दर का गोत्र पाता है। ३ देयगति नामकर्म से देषता होता है। : .