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लखायचा, जोड कीधी छै श्रीजी द्वारा मंझारजी। सम्बत् अट्ठारह पञ्चावनें, बैसाख बद पंचमी बुद्धवाः रजी ।। हिव ॥६४॥ इति अजीव पदार्थ ॥
॥ भावार्थ ॥ .. काल द्रव्य श्ररूपी का विस्तार अल्प मात्र कहा अब पुद्गल द्रव्य रूपीका विस्तार कहते हैं. पुद्गलका स्वभावं पूर्ण गलन है सो पुदगल अचेतन रूपी है द्रव्यतः अनन्ता द्रव्य है सो तीन का: ल में सास्यता है कुछ घटता नहीं, वा वधता नहीं और भावतः असास्वता है. पुदगल के च्यार भेद जिनेश्वर देवोंने कहा है, खन्ध देश प्रदेश और चौथा भेद अलग परमाणू, जबतक खन्ध के साथ है तबतक उसही का नाम प्रदेश है, खन्धसे छूटके अलंग होके येकला रहनेस उसका नाम पारा है, पारण और प्रदेश दो तुल्य हैं अांगुल के असंख्यात में भाग अनावस्थिति अव. गाहना है, तथा पुदगलोका खन्धको अवगाहना भी जघन्यतो श्रांगुल के असंख्यात में भाग हैं उत्क्रप्टी सम्पूर्ण लोक प्रमाण हैं परन्तु अनन्त प्रदेशीया खन्ध येक आकाश प्रदेश में समा जाता है इसका कारण आकाश प्रदेशका स्वभाव अवकास देनेका ही है, यफ आकाश प्रदेश क्षेत्रमें समाया हुआ पुद्गलों का खन्ध फैलफ़र सम्पूर्ण लोक प्रमाण होजाता है ऐसागलन मलन गुन पुदलों का है, खन्ध देश प्रदेश और पर्माण इन च्यारोही की स्थिति जघन्य येक समय है उत्कष्टी असंख्याता कालकी है असंख्यात काल पीछे परिणवाका खन्ध हुआ सो विखर जाता है तथा ख. न्धसे अलग येकला रहा सो पागू भी असंख्यात कालसे ज्यादह नहीं ठहरता है, ऐसाही पुद्गलों का परिणाम है सो भाव है इस लिए भाव पुद्गल प्रसास्वता है और अनन्त गलन मलन रूप अनन्ती पर्याय है, ज्यो २ वस्तु पुदगलों की होती है सो सेव नास होती है वो भाव पुद्गल है परन्तु पुद्गल त्वपणा, सास्वता है जसे सोनेको गालके गहना बनाया तो आकार को बिनास पर