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(३२) अनन्त प्रदेश कै तेहना, तिखसू काय कही जिन रावजी। हिव ॥६॥ धर्मास्ति श्रधर्मास्ति काय तो, पहुली छै लोक प्रमाणजी । लोकालोक प्रमाण श्राकाशास्ति, लांबीगहुलीजाणजी हिव॥७॥ धर्मास्ति ने अधर्मास्ति वाल, तीजी श्राकाशास्ति कायजी । यह तीन ही कही जिन सास्वती, तीन ही कालरै माहिनी ॥ हिव ॥ ८ ॥ यह तीनूं ही द्रव्य छै जुश्रा, २ जुवा जुवा गुण पर्यायजी । त्यांरा गुण पर्याय पलटै नही, सास्वता तीन काल मांहिजी । हिव ।। ।। यह तीन ही दृव्य फैली. रहया, ते हालै चाले नहीताहजी । हालै चालै ते पुदगल जीव छै, ते फिरै लोकरे माहिजी ।। हिव ॥ १० ॥ जीव पुद्गल चालै तेहनें, सहाय धर्मा स्ति कायनी, अनन्ता चाले त्याने सहाय छ, तिण से अनन्ती कही पर्यायजी ॥ हिव ॥ ११॥ जीव ने पुद्गल थिर रहै तिणनें सहाय अधर्मास्ती कायजी । अनन्ता थिर रहै त्यांने सहाय छै, तिणसूं अनन्ती कही. पर्यायजी। हिवः ॥ १२॥ नीव अ. जीव सर्व द्रव्यनो, भाजन श्राकाशास्ति कायजी। अनन्तारोभाजन छै तेहसं, अनन्ती कही पर्यायजी॥