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( ३१) ॥ अथ दितिय अजीव पदार्थ ॥
॥दोहा॥ अजीव पदार्थ भोलखायवा, तिरणरा कहुं भाव भेद । थोडासा प्रगट करूं, ते सुणज्यो आण उमेद ॥ १ ॥ ढाल ॥ मम करो काया माया कारमी एदेशी। धर्म अधर्म आकाश है, काल में पुद्गल जांणजी। ये पांचू हींद्रव्य श्रजीव छै, त्यारी बुद्धिवन्त करज्यो पिछाणजी॥ हिव श्रजीव पदार्थ पोलखो॥१॥ यह चारूं ही दृव्य अरूपी कह्या, यां में वर्ण गन्ध रस स्पर्श नाहिंजी एक पुद्गल दृव्य रूपी कह्यो, वर्णादिक सर्व ति. ण माहिजी॥ हि ॥ २॥ यह पांचू ही हव्यभेला रहै, पिण भेल समेल नहीं होयजी। आप श्राप तणां गुण लेरया, त्यां ने भेला करसके नहीं कोय. जी ।। हिव ॥३॥ धर्म हव्य धर्मास्तिकाय छै, प्रा. स्ति ते छती वस्तु ताहनी । असंख्यात प्रदेश, तेहनातिणसूं काय कही जिणरायनी । हिव ॥४॥ श्रधर्म हव्य अधर्मास्ति काय छै, या पिण छती वस्तु तायजी, असंख्यात प्रदेश छै तेहसूं, काय कही इण न्यायजी॥हिव ॥ ५॥ श्राकाशव्य श्राकाशास्तिकायछै, या पिण छतीवस्तु ताहापजी ।