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(२४) क्षयोपसम में यह जीव परिणमें सो परिणामिक भीव जीवजाः णी उपरोक्तं भावों में परिणमनेसे ८० वोलो की प्राप्ती होती हैं उनका वर्णन संक्षप से यहां करते हैं
१ उदयतो अष्टं कम अंजविहै उन के उदय से ३३ बोल होते हैं लो जीव हैं नरकांदि गति, पृथिव्यादि ६ काय, कृष्णादि ६ लेस्या, क्रोधादि ४ कषाय, स्त्रियादि ३ वेद यह २३ हुएं, मिथ्यास्वी २४, अवती २५, प्रसन्नी २६ अंत्राणी २७, श्राहारती २८, सं. योगी २६, छद्मस्थ ३०, अकेवली ३१, अंसिद्धतां ३२, संसारता ३३,
३ उपसम एक मोहनीय कम होता है सो अंजीव है और मोहनीय कर्म के उपसमन संजीव के २ वालों की प्राप्ती होती है सो उपसम भाव जीव है उपसम सम्यक्त १ उपसम चारित्र २
३ क्षय श्राठों ही कर्म होते हैं सोतोअंजीव हैं उन के देय होने से १३ बोलों की प्राप्ती होती हैं सोनायक भाव जीव है, ज्ञाना. घरणी कर्म क्षय होने से जीवका जो निज गुन केवल याने सम्पूर्ण ज्ञान होता है।, दरशनावरणी कर्म क्षय होनसे जीव का दरिशनगुन है सो होता है केवले दरिशने, १ मोहनीय कर्म के दो भेद हैं दरिशनं मोहनीय चारित्र मोहनीय, दरिशन मोहनीय क्षय होने से क्षायक सम्यक्त ३ चारित्रं मोहनीय क्षयं होने से क्षायक चारित्रं, ४ वेदनी कर्म क्षय होने से श्रोत्मिकं सुख,५नाम कर्म क्षार्यकं होने से अमूर्तिक भाव ६, गौत कमें क्षयं होने से गुरु ले५७, आयुष्यं कर्म क्षय होने से अटल अवगाहनों ६, अन्तरायं कम क्षयं होने से दानं लाब्ध ६, लाभ लब्धी १०, भौगैलब्धी ११, उपभोलिन्धि १२, वीर्यलन्धि १३
४ क्षयोपसमें शानावरणी दारशनावरणी मोहनीय अंन्तराय इन चार कमी का होता हैं वोतो अजीव है. इन चारों कर्मों का जय और उपसम होने से २२ बोलों की प्राप्ती होती है वो नयाँ पसेम भाव जीध हैं