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नं० मूल पाठ | टीका
भावार्थ
प्रात्मा १० प्रआयातिवा
नाना गति नाना प्रकार की गति करके सर्व लोक को "सतत गाभि स्पर्शता है इस से दसवां नाम आत्मा है । त्वात्
रङ्गणेति.११ रंगणे तिवा
गणं राग रागद्वेष मयीरङ्ग से रंगा हुवा है इसी स्तद्योगाद्र- लिए इशारमा लास रङ्गणेति है । झणः
हिण्डुएति. १२ हिंडएतिवाहिण्डुकत्वे
कर्ममयी हिंडोले में बैठ के च्यार गती में न हिण्डुका
हिंडता है इससे धारमा नाम हिंडुक है ..योगलेति-पूरणाद्गना
पुद्गलों को ग्रहण करना और छोडनादि च शरीरादिनापुद्गलः
| कार्य करता है तथा पुद्गलों से लिप्त है मा.निषेधे प्रत्यया यह जीव नया नहीं है सास्वता है इस
की पर्याय तो पलटती है परन्तु द्रव्यत: नादित्वा. सास्वता है इससे सानव है. पुराण:
१३
वा
वा
कर्ता कार- कर्मों का कती है वोही पाश्रव है इस १५ कत्तातिवाका कर्म-लिए जीव का नाम करता है ।
रंगांम् ।
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