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(१८) श्रा निरजरारी करणी श्रमाम, जीव उज्वल ते निरजरा ताम ॥ १७ जए तिवा नाम तणों विचार, कर्म रिपूरो जीपण हार । जब जीवरी जय होजावे, तर सास्वता सुखजीव पावै॥ १८॥ जंतु तिवा नाम इणन्याय, एक समय लोकान्ते जाय । यहवो शक्ति स्वभावी जीव, तिणरो कदेह न होय अजीव ॥ १६ ॥ सयंभूतिवा छै जीवरो नाम, किण ही निपजायो नहीं ताम । ते तो छै द्रव्य जीव सभावे, ते तो कदे नहीं विल लावे ॥२०॥ जोणी तिवा जीवरो नाम, मर मर ऊपनो ठाम मम । चौरासी लखयोनीरे माहि, उपज्यो ने नि: सर गयो ताहि ॥ २१ ॥ ससरीरी तिवा नाम यह, शरीरै अंतर रहै तेह । शरीर पाछै नाम धरायो, काला गौरादि नाम कहायो ।॥ २२ ॥ नाया तिवा कर्मारो नायक, निज सुख दुःख नों छै दायक । तथा न्याय तणों करण हार, ते तो बोले छै बचन बिचार ॥ २३ ॥ अन्तर अप्या तिवा जीवरो नाम, सर्व शरीर व्यापी रह्यो ताम । लोली भूत छै पुदगल माहि, निज सरूप दबोरह्यो ताहि ॥ २४ ॥द्रव्य जीव सास्वतोयेक, तिणरा भाव कह्या छै अनेक । भावतो लक्षण गुण पर्याय, ते तो भाव जीव छै ताय ॥ २५॥