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रचना करै ताम । विविध प्रकारना रचै रूप, ते ती भंडानें भला अनूप ।। ६ ॥ जेयां तिवा नाम: श्रीकार कर्मी रो जीपण हार । तिणरो प्राक्रम शक्ति अनन्त, थोडामें करै कर्मारो अन्त ॥ १० ॥ श्राया तिवा नाम इणन्याय, सर्वलोक स्परों के ता. हाय । जन्म मरण किया गम ठाम, कठै पाम्यों नहीं पाराम ॥ ११ ॥ रंगणें तिवा मोह मंद मातो, रागदेष में रहै रंगरातो । तिण रहै छै मोहमतवालो, श्रात्माने लगावै कालो ॥ १२ ॥ हिंडए तिवां जीवरो नाम, चहुँ गति में हिंड्यो के ताम । कर्म हिंडोलै ठाम ठाम, कठै पास्यों नहीं विसरामं ॥ १३ ॥ पोग्गले तिवा जीवरो नाम, पुद्गल ले ले मेल्या गम ठाम । पुद्गल में राचरह्यो। जीव, तिणसू लागी संसाररी नीव ॥ १४ ॥ माणवे तिवा जीवरो नाम, नवो नहीं सांस्वतो छै ताम । तिणरी पर्याय तो पलटजाय, द्रव्यतो ज्यू से ज्यू रहँसीहाय ॥ १५ ॥ कत्ता तिवाजीवरौ नाम कर्मारो करता छ ताम । तिणसं तिणने कह्यो श्राश्रवतिणसू लागै छै पुद्गल द्रव्य ॥ १६ ॥ विकत्ता तिवा नाम इणन्याय, कर्माने विधूणे छै. ताय ।