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(१५) झोलख करके मनकी क्षान्ति पुर्ण करें, क्योंकि जीव अजीव को पहिचाने वगैरमनकी भ्रान्ति नहीं मिटती है मनका भ्रम दूरछुए विनासम्यक्त्व नहीं स्पर्शती ओर समकित के अभाव में भावते हुवे कर्म नहीं रुकते हैं, इसही लिए नवपदार्थों को यथार्थ श्रद्धने से जीव सम दृष्टि कहलाता है तब मोक्षस्थान की नींव याने बुनियाद को डढ करे हैं इसवास्ते स्वामी भीषनजी कहते हैं नव पदार्थ को उलखाना निमित्त अलग अलग भेद कारेके कहता हूं प्रथम जीव पदार्थ को उलखाता हूं सी हे भव्यजनों यह सुनो।
द्विाल॥ ॥ प्रथम डाभमूनादिकनी डोरी एदेसी ॥ सास्वतो जीव दर्व साक्षात । घटै बधै नहीं तिल मातातिणारा भसंख्याता प्रदेश । घटै बधै नं. ही लवलेश ॥ १॥ तिणसू द्रव्य कयो जीव एक ! भाव जीवरा भेद अनेक । तियरो बहुत कह्यो विस्तार । ते मुद्धिवन्त जाण विचार ॥२॥ भगवती वीसमां सतक म्हांय । बीजे उदेसे कह्यो जिनराय । जीवरा तेवीस नाम । गुण निष्पन्न कह्या छै ताम-३ ॥
(भावार्थ ) जीधको द्रव्य भाव यह दो भेद करि उलखाते हैं द्रव्य जीव के असंख्यात प्रदेश का समूह है बो सदा सर्वदा त्रिकाल में सास्वत हैं उन असंख्यात प्रदेशो में से कभी भी एक अधिक न्यून नहीं होता है उन संख्याता प्रदेशों की समुदाय करिके एकजीव दृव्य है याने एक जीव के असंख्याता प्रदेश हैं और उन असं.. ख्याता प्रदेशों का एक जीव है ऐसे लोक में सब जीव अनन्त हैं