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भाती है जो जातिवन्त कुलवन्त और लज्जायन्त होगा वो तो किसी का नाम लेके हरगिज़ भी अपशब्द नहीं निकालेगा परन्तु अधम जातिवाला केवल पेटार्थी गुणशून्य मानव शुद्ध साधू मुनिराजों से द्वेष करके अनेक मृषा पाल दते नहीं लाजेंगे जिनकी आदत निन्दा करने की है उन्हें निन्दा किये विना जक नहीं पडती नीति शास्त्रों में कहा है,
नचना परवादेन रमते दुर्जनो जनः ।
काक सर्वरसान भुका विना मेध्यं न तृप्यति॥ अर्थात् कागला अनेक रस खाता है परन्तु भ्रष्टा में मुख दिये विना तृप्त नहीं होता है वैसही निन्दक निन्दा किये विना खुश नहीं होता । इस लिए हमारा कहना है हे प्रियवरो!मत पक्ष को तज के सत्यासत्य का निर्णय करो यह मनुष्य जन्म स्यात् स्यात् नहीं मिलने का है, महानुभावों! आप लोगों से प्रार्थना है कि द्वेषभाव को छोडकर जिनप्राशा धर्म धारण करो तव कुगति से बचोगे और अपनी आत्मोन्नति होगी- आपका हितेच्छू
__ श्रा० जोहरी गुलाबचन्द लुणीयां ॥ अथ स्वामी श्रीभीखनजी कृत नव पदार्थ उलखना की जोड । दोहा-नमूंबीर शाशन धणी, गणधर गौतम स्वाम।
तरण तारण पुरुषांतणों, लीजे नित प्रतनाम १ श्लोक-बीराय शासनेशाय, गौत्तमस्वामिने नमः । ... भवाब्धितारकं यस्य, नामस्मरणमञ्जसा॥१॥
॥दोहा ।। तेजीवादि नव पदारथ तणो, निरणो कियों भांत । त्यांने हलुकर्मी जीवां उलखें, रैमनरी खांत ॥२॥