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पृथक् पृथक् जीयों के अनेक अनेक भाव है सब जीवों की समु. दाय करिके ही संग्रह नय की अपेक्षायें श्रीठाणां अंग सूत्र में कहा है "एगे जीवा एगे अजीषा एगे पुन्ना एगे पावा' इत्यादि और एक जीवके अनन्त गुण पर्याय हैं इसयास्ते भाव जीव के अनेक भेद कहे हैं श्रीपञ्चम अङ्ग भगवती के वलिमा शतक के दूसरे उद्दसा में जीवके तेवोल नाम गुण निष्पन्न कहे । सो कहते हैं, तात्पर्य यह है कि जोर द्रव्यतः सास्वता और भावतः अलास्वता है, अब भाव जीव के तैवीस नाम कहे सो कहते हैं।
॥ ढाल तेहिज ॥ जीवे तिवा जीवरो नाम । श्राउपो ने बले जीव ताम ॥ यो तो भाव जीव संसारी। ते बुद्धिवंत लीज्यो बिचारी ॥ ४ ॥ जीवत्थी काय ए जीवरों नाम । देह धरै छै तेह भणी श्राम।।परदेशांरो समूह ते काय । पुदगलरा समूह छै तहाय ॥५॥ स्वास उस्वास लेवे छे ताम । तिणसूं पाणे तिवा जीवरो नाम ॥ भूएतिवा कह्यो इणन्याय । सदा छै तिहूं कालरे भांय ॥ ६॥ सत्ते.तवा कह्यो इण न्याय। शुभाशुभ पोते के ताय॥ विणतिवा विषय को जाण । शब्दादिक लिया सर्व पिछाण ॥७॥ बेयातिवा जीवरों नाम । सुख दुख बेदे छै ठाम ठाम । तेतो चेतन रूप छै जीव । पुदगलरो स्वादी सदीव ॥८॥ चेयातिवा जीवरो नाम | पुदगलरी