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मूलाराधना
आयासः
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जो मरण होता है वह तपोमानवशात मरण है.
मायाके पांच प्रकार है. निकृति, उपधि, साति प्रयोग, मणिधि और प्रतिकुंचन. १ धनके विषय में अथवा किसी कार्यके विषयमें जिसको अभिलाषा उत्पन्न हुई है ऐसे मनुष्यका जो फसानेका चातुर्य उसको निकृति कहते हैं २ अच्छे परिणामको ढककर धर्मके निमित्तसे चोरी वगैरे दोषों में प्रवृत्ति करना वह उपधिसंज्ञक माया है. ३ धनके विषयमें असत्य बोलना, अपने हाथमें किसीने रखनेकेलिये द्रव्य दिया हो तो उसका कुछ हिस्सा हरण करना, दृषण लगाना, अथवा प्रशंसा करना वह सातिप्रयोग माया है. ४ हीनाधिक कीमतकी सदृश वस्तुयें आपसमें मिलाना तोर और मापके शेर पोती वगैरह साधन पदार्थ कम जादा रखकर लेन देन करना, सच्चे और झूटे पदार्थ आपसमें मिलाना, यह सब प्राणिधि माया कहते हैं. ५ आलोचना करते समय अपने दोष छिपाना यह प्रतिकुंचन माया है. ऐसे मायाके प्रकार करते हुए जो मरण होता है उसको मायावशार्तमरण कहते हैं,
उपकरण पिछी, कमंडलु आदिक, भक्तपान-आहारके और पीनेके पदार्थ, शरीर, निवासस्थान इत्यादिकोमें इच्छा-ममस्य रखते हुए जो मरण होता है वह लोभवशार्तमरण कहते हैं.
हास्य, रनि, अरति, शोक, भय, जुगुप्मा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद इनमे जिसकी बुद्धि मृद हो गई है ऐसे मनुष्यका जो मरण वह नोकषायवशात मरण है.
जो प्राणी वशार्तमरण को प्राप्त होते हैं वे मनुष्य और तिर्यचोंमें जन्म धारण करते हैं. तथा असुर, कंदर्पजातिके देव, किल्विष देव इनमें वसातभरणसे मिथ्यारष्टि जीव उत्पन्न होते हैं. इनके इस मरणको बालमरणमें अन्तर्भूत कर सकते हैं. दर्शन पंडित भी, अविरत सम्यग्दृष्टि, और संयतासंयत जीव भी चशातमरणको प्राप्त होते हैं. उनका यह मरण बालपंडित मरण अथवा दर्शन पंडित भरण समझना चाहिये
विप्राणसमरण और गृद्धपृष्ठ ऐसे नाम जिनके हैं ऐसे दो मरणोका शास्त्राम निषेध नहीं है और इनकी अनुज्ञा भी नहीं है.
दृष्कालमें, अथवा दुर्लध्य ऐसे जंगलमें, पूर्वकालके शत्रुका भय उपस्थित दुवा हो ऐसे समयमें, दुष्ट राजासे भीति उत्पन्न हुई हो, चोरसे भय उत्पम दुवा हो, तिर्यचका उपसर्ग हो रहा हो, एकाकी स्वयं सहन करने में असमर्थ होनेसे, ब्रम्हवतका नाश वगैरेके द्वारा चारित्रमें दोप लगनेका प्रसंग आया हो तो संसारभीरू,
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