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यूलाराधना
आश्वासः
चाहिये. यह मायाशल्यमरण मुनि, श्रावक, और असंयतसम्यग्दृष्टिको प्राप्त होता है.
चलाय मरण-बलाका भरण-देववंदनादिक नित्यनैमिात्तिक क्रिया करनेमें अलसी-प्रमादयुक्त, विनय, वैयावृत्य वगैरे कार्योंमें आदरभाव न रखनेवाला, व्रत, समिति और गुप्ति इनके पालनमें अपनी शक्ति छिपाने वाला, धर्मके स्वरूपका विचार करनेके समय मानो नींद लेनेवाला, और ध्यान, नमस्कारादिसे दूर भागनेवाला ऐसे मुनीके मरणको बलाकामरण कहते हैं, उपयुक्त कार्योंमें अनुपयुक्त रहनेवाले मुनि इस मरणसे मरते हैं. सम्यक्त्वपंडित, ज्ञानपंडित, चारित्रपटित ऐसे लोक इस मरणसे मरते हैं. इनके सिवाय अन्य भी इस मरणसे मरते हैं. अवसनमरण और मशल्यमरणका स्वरूप पीछे कह चुके हैं उसमें नियमसे पलाय मग्ण होता है..
ओसमरण-जिसने शल्यरहित और संसार नुस्खसे भयभीत होकर चिरकाल रत्नत्रयका पालन किया है, जिसने ममाधिमग्णके लिये मंस्तरका आश्रय लिया है. ऐसा मुनि यदि शुभोपयोगको छोड दे नो शुभभाव उसमें नहीं रह सकेगा उसको आसध्यान और रौद्रध्यान घेर लेगा. ऐसी अवस्थामें पुनकिा यदि मरण होगा तो उसको सट्टमरण कहते हैं. इस मरणके १ इंदियवसट्टमरण २ वेदनावसहमरण, ३ कसायवसट्ट भरण ४ नोकषायचसट्टमरण ऐसे चार भेद है.
इंदियवसदृमरण-स्पर्शनादिक पांच इंद्रियोंके स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द ऐसे पांच विषय है, इन विषयोंकी अपेक्षासे इस मरणके पांच भेद होते है. जैसे-स्पर्शनेंद्रियवसट्टमरण, रसनेंद्रियवसहमरण इत्यादि. देव, मनुष्य, तिर्यच, और अजीच पदार्थ इनके द्वारा किये गये तत, वितत, घन, और सुषिरशब्दोंमें-यदि ये मनोहर हो तो उनमें आसक्त होकर, अमनोहर हो तो उनमें देषयुक्त होकर जो मरण होता है उसको श्रोत्रंद्रियवसहमरण कहते हैं. अब, पान, खाद्य और लेह्य ऐसे चार प्रकारके सुंदर और असुंदर आहारमें क्रमसे आसक्त और द्वेष युक्त होकर मरना यह रसनेंद्रिय वसट्टमरण है. पूर्वोक्त देव, मनुष्य, तिर्यच और अजीव पदार्थ इनके गंधर्म आसक्त या द्वेषयुक्त होकर मरना यह घ्राणेंद्रियवसट्टमरण है. उपर्युक्तपदार्थोंके रूप में या आकृतमि आसक्त अथवा द्वेषयुक्त होकर मरना नेत्रंद्रिय बसट्ट मरण है. इनही पदार्थोंके पॉम आसक्त या विष्ट होकर भरना स्पर्शनेंद्रिय यस मरण है. इन सब मरणाका इंद्रियानिद्रिय वसट्ट भरण ऐसे एक नामसे उल्लेख करते हैं,
बेदनावसट्ट मरण---इस मरणके सातवेदनावशात मरण और असातवेदनावशात मरण ऐसे दो भेद हैं,