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मूलाराधना
आश्वासः
शारीरिक और मानसिक रेवनारी भीतिर होकर अर्थात् उनमें एकाग्रचित्त होकर, दुःखसे मूर्छित होकर जो मरण होता है वह असातवेदनावशात मरण है, शारीरिक और मानसिक सुखोंमें अनुरक्त होकर जो आर्त ध्यानसे मरण होता है वह मातवेदनावशात मरण है.
कपायत्रशात मरणकषायके चार भेद होनेसे इस मरणके भी चार भेद होते हैं. स्वतःमें, दूसरे अथवा उभयत्र उत्पन्न हुवा जो क्रोध मरणको कारण हो जाता है वह क्रोधकषायवशात मरण है. मानवशात मरण-इसके आठ भेद है. कुल, रूप, चल, शास्त्रज्ञान, ऐश्वर्य, लाभ, प्रज्ञा-बुद्धि ब तप इन उत्पन्न हुए अभिमानके नशेमे मरण होना मानवशात मरण है. १ विख्यात, विशाल और उत्कर्षको प्राप्त हुए कुलमें उत्पन्न हुवा हूं ऐसे अभिमानसे जो भरण होता है वह कुलमानवशात मरण है.
२ मेरी पांचो इंद्रियां नियंग हैं, मेरा शरीर संपूर्ण अवयवोसे युक्त है, मैं तेजखी है, नवीन यौवनसे मेरा शरीर युक्त है, मेरा सौंदर्य समस्त लोकोंके अंतःकरणको हर लेता है ऐसी भावनामें जो मरण होता है वह रूपमानवशात मरण है.
३ मै वृक्ष और पर्वतोंको भी उखाडनेमें समर्थ ई, बडे बडे योद्धा मेरे आश्रयमें रहते हैं, बहुतसे मित्र भी मेरेको सहाय प्रदान करते हैं. ऐसा खकीय बलका अमिमान करते करते मरण होना बह बलाभिमानवशात मरण है.
मैं बडे परिवारका मालिक हूं, बहुत लोगोंपर मेरी हुकमत चलती है ऐसे ऐश्वर्यके मानसे उन्मत्त होकर जो मरण होता है वह ऐश्वयमानवशात मरण हे.
५ मैने लोक व्यवहार, वेद, अनेक मत इनके सिद्धान्त शास्त्रोका अध्ययन किया है ऐसे शास्त्रज्ञानके अभिमानमें चूर होकर मरण करना यह श्रुतमानवशात मरण है.
६ मेरी बुद्धि तीक्ष्ण है, सर्व विषयों में बिना रुकावटके प्रवेश करती है ऐसे बुद्धयभिमानके वशमें आकर भरण होना वह प्रज्ञामानवशात मरण है.
७ व्यापारमें मेरेको हमेशा लामही होता है ऐसा लाभके अभिमानमें मत्त होकर जो मरण होता है वह लाभमानक्शात मरण है. ८ मै तप करता हूं, मेरे समान तप करनेवाला कोई नहीं है ऐसे अभिमानमें आकर