Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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शुभकामनाएं
दिनांक ११ जनवरी १९९१ बम्बई- २.
कोंकण केशरी मुनिश्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी के दर्शनों का सुअवसर मिला उनकी तेजस्विता, कार्यपध्दति एवं जैन धर्म प्रचार प्रसार की तीव्र भावना देखकर मन को प्रसन्नता हुई। कोंकण प्रदेश में आपने दो वर्षों तक सधन धर्म प्रचार किया। ओजस्वी
वक्ता, प्रभावशाली व्यक्तित्त्व के धनी मुनिवर्य के लिये अभिनन्दन ग्रंथ में मेरी भावनाएं प्रेषित है।
शासन देव आपको संयम युक्त धर्म की अधिक से जैन एकता एवं समन्वय की दिशा में अच्छा होगा।
शुभकामनाओं सहित
सेवा में
प्रबंधक मुनिश्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी अभिनन्दन ग्रंथ समिति, बम्बई
दीर्घ आयुष्य प्रदान करें ताकि जैन
अधिक प्रभावना हो । मुनिश्री अपनी शाक्ती लगायें तो बहुत
जैन संचयलाल डागा, अध्यक्ष भारत जैन महामण्डल
दिनांक 99 जनवरी १९१
प्रिय महोदय जय जिनेन्द्र
यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई की त्रिस्तुतिक संघके पूज्य कोंकण केसरी मुनिराज श्री लेवेन्द्रशेखरविजयजी का अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है। संतों-मुनियों का वंदन - अभिनन्दन भारतीय संस्कृति रही है। मुनिराजश्री ने कोंकण क्षेत्र में धर्म जागृति का जो कार्य किया है। उसके लिए उनका अभिनन्दन होना ही चाहिये।
मैं मुनिश्री के संयममय दीर्घायुष्य की कामना करते हुए उनके द्वारा जैन धर्म की अधिक से अधिक प्रभावना हो यही शुभकामना व्यक्त करतां हूं।
पुखराज एस. लुंकड, अध्यक्ष अ. भा. श्वे. स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस
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प्रजा सदैव सुयोग्य सक्षक की प्रशंसक रही है जिस रक्षक में रक्षक जैसा गुण नही रहता तो उसे प्रजा अंतः करण से १७ स्वीकारती भी नही है। और जिसे प्रजा न स्वीकार वह रक्षक भी नही रह सकता।
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