________________ क्षयोपशम भाव चर्चा उस समय अनन्तानुबन्धी का उदय नहीं होने पर भी मिथ्यात्व-प्रत्यय प्रकृति के बँधने में बाधा नहीं है। मिथ्यात्व-प्रत्यय (मिथ्यात्व के निमित्त से बँधनेवाली प्रकृतियाँ) प्रकृतियाँ 16 हैं - 1. मिथ्यात्व 2. हुंडकसंस्थान 3. नपुंसकवेद 4. असंप्राप्त-संहनन 5. एकेन्द्रिय 6. स्थावर 7-8-9. विकलत्रय 10. आतप 11. सूक्ष्म 12. साधारण 13. अपर्याप्त 14. नरकगति 15. नरकानुपूर्वी 16. नरकायु (गो.क. 95, धवल 7/10) परन्तु अध्रुव-बन्धी प्रकृतियाँ भी (मिथ्यात्व सिवा पन्द्रह) ऊपर लिखी हुई में से है, अतः इन उपर्युक्त 16 ही प्रकृतियों का बन्ध एक साथ तो कभी भी सम्भव नहीं; अतः उक्त 16 प्रकृतियों में से मात्र 1 मिथ्यात्व ही ध्रुवबन्धी है, अतः मुख्यतः उसकी अपेक्षा ही तथा गौणतः शेष 15 प्रकृतियों की अपेक्षा भी नीचे कारण-विनिर्णय किया जाता है। मिथ्यात्व प्रत्यय स्थिति-बन्ध के कारण यानी प्रत्यय 16 बँधने वाली मूल कारण विशेष कारण (विशिष्ट प्रत्यय) कर्मों/प्रकृतियों के उदित कषाय मूल मोहनीय कर्म; जिसका कि उदय, (तीन या चार मिथ्यात्व व कषाय के समन्वित रूप है, चौकड़ी, जो किसी एक रूप नहीं भी उदित हो) नाम 1.मिथ्यात्व " मूल आयुष्क कर्म; जो भी उदित हो " | 2. नपुंसक वेद | 3. नरकायु 4. हुंडक संस्थान 5. असंप्राप्तः संहनन 6. एकेन्द्रिय 7. स्थावर 8.9.10. विकलत्रय 11. आतप | 12. सूक्ष्म 13. साधारण 14. अपर्याप्त | 15. नरकगति | 16. नरकानुपूर्वी मूल नाम कर्म प्रकृति (अर्थात् 21 से लेकर 31 पर्यन्त संख्या वाले नामकर्म उदय स्थानों (गो.क. 588 से 592) में से एक उदयस्थान जो भी वर्तमान हो : उस समय उदित सकल नामकर्म प्रकृति का सामूहिक मिश्रित-अनुस्यूत उदय से संजात परिणाम) यानि नामकर्म प्रकृति समूह के उदय से संजात परिणाम।